सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कई गोद लेने से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए चार नाबालिग बच्चियों को उनके दत्तक माता-पिता को लौटाने का आदेश दिया है। यह फैसला 12 अगस्त 2025 को उस अपील पर आया, जो तेलंगाना हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के उस आदेश के खिलाफ थी जिसमें बच्चों की अभिरक्षा बाल कल्याण समिति (CWC) के पास बरकरार रखी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
विवाद तब शुरू हुआ जब पुलिस ने कई नाबालिग बच्चों को उन व्यक्तियों से अपने कब्जे में ले लिया, जो खुद को उनका दत्तक माता-पिता बता रहे थे। ये गोद लेने की प्रक्रियाएं निजी तौर पर की गई थीं, जिनमें अक्सर बहुत छोटे शिशु शामिल थे, और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत औपचारिक गोद लेने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
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दत्तक माता-पिता का कहना था कि उनका गोद लेना हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत वैध है और पुलिस की कार्रवाई गैरकानूनी और अधिकारहीन थी। मामला पहले तेलंगाना हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के सामने आया, जिन्होंने दत्तक माता-पिता के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि विशेष परिस्थितियों में किशोर न्याय अधिनियम लागू नहीं होता तथा बच्चों की अभिरक्षा दत्तक माता-पिता के पास बनी रहनी चाहिए।
हालांकि, बाल कल्याण परियोजना निदेशक और अन्य अधिकारियों ने अपील की, जिसके बाद 28 नवंबर 2024 को डिवीजन बेंच ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और बच्चों को आगे की जांच तक संस्थागत देखभाल में रखने का आदेश दिया।
अनिल कुमार, कंदला पद्मा, शुल्ला मल्लेश और बी. संतोष तथा उनके जीवनसाथियों की अपील सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के सर्वोत्तम हित का सिद्धांत, पारिवारिक जिम्मेदारी और पुनर्वास व पुनर्स्थापन जैसे प्रावधानों पर जोर दिया, जो कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 3 में शामिल हैं।
“बच्चे से जुड़ा हर निर्णय उसके सर्वोत्तम हित को प्राथमिक मानकर लिया जाना चाहिए,” कोर्ट ने दोहराया।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथ्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने माना कि बच्चे कुछ महीनों से लेकर तीन साल तक दत्तक माता-पिता के साथ रह रहे थे, जिससे गहरा भावनात्मक संबंध बन चुका है।
अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए कोर्ट ने आदेश दिया:
- सभी चार बच्चों की अभिरक्षा उनके संबंधित दत्तक माता-पिता को 14 अगस्त 2025 शाम 5:00 बजे तक सौंपी जाए।
- नवंबर 2025 से शुरू होकर तिमाही कल्याण रिपोर्ट राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव द्वारा ली जाए।
- बाल कल्याण विशेषज्ञ द्वारा घर का निरीक्षण कर बच्चों के कल्याण की पुष्टि की जाए।
- रिपोर्ट संबंधित बाल कल्याण समिति को सौंपी जाए।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश मामले की विशेष परिस्थितियों के आधार पर है और अन्य कानूनी कार्यवाहियों को प्रभावित नहीं करेगा।
मामले का नाम: दसरि अनिल कुमार एवं अन्य बनाम द चाइल्ड वेलफेयर प्रोजेक्ट डायरेक्टर एवं अन्य
निर्णय की तारीख: 12 अगस्त 2025
अधिकार क्षेत्र: सिविल अपीलीय क्षेत्राधिकार (Civil Appellate Jurisdiction)
संबंधित अपीलें:
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