दिल्ली हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह 25 वर्षीय हिंदू महिला और उसके मुस्लिम साथी को लगातार सुरक्षा प्रदान करे। यह जोड़ा सात वर्षों से संबंध में है और हाल ही में उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह के लिए आवेदन किया है। महिला के परिवार, विशेषकर उसके पिता, की कड़ी आपत्ति और कथित धमकियों के बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक वयस्क को अपने जीवनसाथी का चयन करने का अधिकार है, और यह अधिकार भय, दबाव या अवैध प्रतिबंध से मुक्त होना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि माता-पिता की पसंद, चाहे वह कितनी भी नेक क्यों न हो, किसी वयस्क की स्वायत्तता पर हावी नहीं हो सकती।
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"राज्य की भूमिका केवल नुकसान से बचने तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसे हालात बनाना भी है जहां इन अधिकारों का सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सके," अदालत ने कहा।
अदालत ने निर्देश दिया कि विवाह संपन्न होने तक जोड़ा सुरक्षित घर (सेफ हाउस) में रहे, और डीसीपी समय-समय पर खतरे का आकलन करें। किसी भी तरह की धमकी, चाहे वह परिवार के सदस्यों से ही क्यों न हो, पर पुलिस तुरंत कार्रवाई करे।
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अदालत ने महिला के इस आरोप पर भी गौर किया कि पहले उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथी से अलग कर महिला आश्रय गृह में रखा गया था और उसका मोबाइल फोन तक छीन लिया गया था। डीसीपी को आदेश दिया गया है कि इस संबंध में महिला का बयान दर्ज किया जाए और विस्तृत रिपोर्ट पेश की जाए, जिसमें यदि कोई अवैध अलगाव हुआ हो तो जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान की जाए।
शक्ति वाहिनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य हेल्पलाइन के संचालन पर भी स्थिति रिपोर्ट मांगी गई है। इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर 2025 को होगी।
केस का शीर्षक:- मोहम्मद शाहनूर मंसूरी बनाम दिल्ली राज्य पुलिस आयुक्त एवं अन्य के माध्यम से।
केस नं.:- W.P. (CRL) 2305/2025