राजस्थान हाई कोर्ट ने हाल ही में निशा मीणा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें अपने डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी, भले ही उनकी वैवाहिक स्थिति को लेकर विवाद चल रहा था। यह मामला, निशा मीणा बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य, उनके ST (विधवा) श्रेणी में प्रवेश और स्वर्गीय लोकेश कुमार मीणा की विधवा के रूप में उनके दावे की वैधता पर केंद्रित था।
मामले की पृष्ठभूमि
निशा मीणा ने ST (विधवा) श्रेणी के तहत डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन कोर्स में प्रवेश लिया था, जिसमें उन्होंने स्वर्गीय लोकेश कुमार मीणा की विधवा होने का दावा किया था। उनका प्रवेश शुरू में तो मिल गया, लेकिन प्रतिवादियों ने इसे रद्द करने की धमकी दी, जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने पहले 21 अक्टूबर, 2024 को एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए उन्हें अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी थी और प्रतिवादियों को उनका प्रवेश रद्द करने से रोक दिया था।
हालाँकि, विवाद तब खड़ा हुआ जब प्रतिवादी नंबर 8, खुशबू मीणा ने निशा के दावे को चुनौती दी। खुशबू ने तर्क दिया कि निशा और लोकेश कुमार मीणा का मार्च 2021 में सामाजिक तलाक हो चुका था, और लोकेश ने बाद में मई 2023 में खुशबू से शादी कर ली थी। लोकेश की मई 2024 में मृत्यु के बाद अब खुशबू विधवा हैं, और उनका कहना था कि निशा ST (विधवा) श्रेणी के तहत लाभ लेने की हकदार नहीं हैं।
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अदालत ने निशा की वैवाहिक स्थिति को लेकर विवादित तथ्यों को स्वीकार किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों का निपटारा रिट अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अनूप कुमार धंड ने कहा:
"याचिकाकर्ता की स्थिति-चाहे वह मृतक की विधवा है या तलाकशुदा पत्नी—से जुड़े विवादित तथ्यात्मक प्रश्नों का निर्णय इस कार्यवाही में नहीं किया जा सकता। पक्षों को अपनी स्थिति की घोषणा के लिए उचित फोरम का रुख करना चाहिए।"
विवाद के बावजूद, अदालत ने निशा के पक्ष में फैसला सुनाया, यह देखते हुए कि वह अंतरिम आदेश के संरक्षण में अपनी पढ़ाई पहले ही पूरी कर चुकी है। प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया कि वे उन्हें 18 अगस्त, 2025 से शुरू होने वाली परीक्षाओं में बैठने दें।
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महत्वपूर्ण बिंदु
- अदालत ने निशा मीणा को परीक्षा में बैठने की अनुमति तो दी, लेकिन स्पष्ट किया कि यह आदेश उनके विधवा होने के दावे को मान्यता नहीं देता।
- दोनों पक्षों को अपनी वैवाहिक स्थिति के विवाद को हल करने के लिए कानूनी राह अपनाने की स्वतंत्रता दी गई।
- यह निर्णय लंबित विवादों को प्रभावित किए बिना अंतरिम राहत प्रदान करने में न्यायपालिका की भूमिका को उजागर करता है।
यह मामला वैवाहिक स्थिति से जुड़े कानूनी दावों की जटिलताओं और लंबित विवादों को प्रभावित किए बिना राहत देने में अदालत की सतर्क दृष्टि को दर्शाता है।
मुकदमे का शीर्षक: निशा मीना बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य
मुकदमा संख्या: S.B. सिविल रिट याचिका संख्या 16392/2024