एक महत्वपूर्ण निर्णय में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि निर्मिति केंद्र सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है। कोर्ट ने निर्मिति केंद्र द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें RTI अधिनियम के तहत सूचना के प्रकटीकरण के राज्य सूचना आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
निर्मिति केंद्र, कर्नाटक सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1960 के तहत पंजीकृत एक सोसाइटी, ने दावा किया कि यह एक निजी संस्था है जिसे सरकार द्वारा वित्तपोषित या नियंत्रित नहीं किया जाता। हालांकि, प्रतिवादियों, जिनमें राज्य सूचना आयुक्त और भारत कृषिका समाज शामिल थे, ने तर्क दिया कि निर्मिति केंद्र सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित और नियंत्रित है, जो इसे आरटीआई अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण बनाता है।
मुख्य तर्क
सरकारी नियंत्रण:
कोर्ट ने नोट किया कि निर्मिति केंद्र की स्थापना ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग के तहत एक सरकारी आदेश (दिनांक 09.11.1988) के माध्यम से की गई थी। इसके शासी निकाय में मुख्य सचिव, उपायुक्त, और जिला पंचायत के इंजीनियर जैसे उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारी शामिल थे, जो सरकारी भागीदारी को दर्शाते हैं।
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पर्याप्त वित्तपोषण:
निर्मिति केंद्र के लिए धन हुडको (हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन), एक सरकारी संस्था, और अन्य राज्य अनुदानों से प्राप्त किया गया था। कोर्ट ने देखा कि केंद्र का संचालन जनता के धन पर निर्भर है, जो RTI अधिनियम की धारा 2(h)(ii) के तहत "पर्याप्त वित्तपोषण" की कसौटी को पूरा करता है।
न्यायिक पूर्ववर्ती:
प्रतिवादियों ने देव संस्कृति विद्यालय ट्रस्ट बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस (2019) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि सरकार द्वारा "नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित" संस्थाएँ RTI अधिनियम के दायरे में आती हैं, भले ही कोई विशेष अधिसूचना जारी न की गई हो।
कोर्ट का अवलोकन:
"निर्मिति केंद्र सरकारी कर्मचारियों के पूर्ण नियंत्रण में है, और इसका वित्तपोषण सार्वजनिक स्रोतों से होता है। पारदर्शिता से बचने के प्रयास अस्वीकार्य हैं।"
जस्टिस सूरज गोविंदराज ने माना कि निर्मिति केंद्र एक सार्वजनिक प्राधिकरण है, क्योंकि:
- सरकारी नियंत्रण इसके प्रशासनिक ढाँचे के माध्यम से।
- हुडको और राज्य अनुदानों से पर्याप्त वित्तपोषण।
- सरकार की ओर से सार्वजनिक कार्यों का निष्पादन।
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कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और पारदर्शिता के दायित्वों से बचने के प्रयास के लिए निर्मिति केंद्र पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
यह फैसला RTI अधिनियम के उद्देश्य को मजबूत करता है, जो सार्वजनिक धन का उपयोग करने वाली या सरकारी कार्यों को करने वाली संस्थाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। यह RTI जाँच से छूट का दावा करने वाली समान संस्थाओं के लिए एक मिसाल कायम करता है।
निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित या नियंत्रित किसी भी संगठन को RTI प्रकटीकरण का पालन करना होगा, जिससे सार्वजनिक संचालन में जवाबदेही बढ़ेगी।
मामले का शीर्षक: PIO एवं परियोजना निदेशक, निर्मिति केंद्र बनाम राज्य सूचना आयुक्त एवं अन्य
मामला संख्या: WP No. 52581 of 2017 (GM-RES)