दिल्ली हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लक्षय विज़ के खिलाफ विशेष न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने भारत नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 223 के तहत अनिवार्य सुनवाई का प्रावधान पूरा नहीं किया।
यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा 19 सितंबर 2024 को दर्ज अभियोजन शिकायत से जुड़ा है, जो ECIR संख्या DLZO-I/50/2023 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 3 और 4 में दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता ने पहले धारा 223 BNSS के प्रावधान के तहत अभियोजन पर संज्ञान लेने से पहले सुनवाई की मांग की थी, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 4 जनवरी 2025 को यह याचिका खारिज कर दी।
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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने दलील दी कि BNSS 1 जुलाई 2024 से लागू हो गया था, और चूंकि अभियोजन शिकायत इसके बाद दाखिल हुई, इसे पुराने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के बजाय BNSS के प्रावधानों के तहत चलाया जाना चाहिए। उनका कहना था कि यह शिकायत सीधे धारा 223 BNSS के अंतर्गत आती है, जो बिना आरोपी को सुनवाई का मौका दिए संज्ञान लेने पर रोक लगाती है।
ईडी के वकील जोहेब हुसैन ने कुशल कुमार अग्रवाल बनाम ईडी (2025 SCC OnLine SC 1221) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की लागू होने पर आपत्ति नहीं जताई। इस फैसले में कहा गया था कि 1 जुलाई 2024 के बाद दाखिल सभी शिकायतों पर धारा 223 BNSS लागू होगी और सुनवाई का मौका देना अनिवार्य होगा। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि किसी भी लंबित जमानत याचिका पर उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला लिया जाए।
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न्यायमूर्ति रविंद्र दुडेज़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कुशल कुमार अग्रवाल मामले में स्पष्ट कर चुका है कि BNSS लागू होने के बाद दर्ज पीएमएलए शिकायत में सुनवाई के बिना कार्यवाही नहीं हो सकती। उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने केवल धारा 223 BNSS के अनुपालन न होने के आधार पर ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया था, बिना मामले के गुण-दोष में जाए।
सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में:
"बिना आरोपी को सुनवाई का अवसर दिए मजिस्ट्रेट द्वारा किसी अपराध का संज्ञान नहीं लिया जाएगा।"
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चूंकि ईडी की शिकायत विज़ के खिलाफ 1 जुलाई 2024 के बाद दर्ज हुई थी, हाईकोर्ट ने माना कि सुनवाई का अवसर न देना कानून के खिलाफ था।
इसी आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए 4 जनवरी 2025 का आदेश रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि आरोपी को सुनवाई का मौका देने के बाद ही BNSS की धारा 223 के अनुसार संज्ञान लें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत याचिकाओं पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जाए।
केस का शीर्षक:- लक्ष्य विज बनाम प्रवर्तन निदेशालय अपने निदेशक के माध्यम से