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सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट विवाद डिक्री बहाल की, पक्षों को रुख बदलने पर फटकार

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरु तेग बहादुर चैरिटेबल ट्रस्ट मामले में निचली अदालतों के फैसले रद्द कर दिए, और कहा कि उत्तरदाता सहमति डिक्री से मुकर नहीं सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट विवाद डिक्री बहाल की, पक्षों को रुख बदलने पर फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को एक अहम फैसले में संजीत सिंह सलवान एवं अन्य की अपील स्वीकार करते हुए सरदार इंदरजीत सिंह सलवान एवं अन्य के खिलाफ लंबे समय से चल रहे गुरु तेग बहादुर चैरिटेबल ट्रस्ट विवाद में सहमति डिक्री के आधार पर क्रियान्वयन का अधिकार बहाल कर दिया।

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विवाद की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता और उत्तरदाता, दोनों ही ट्रस्ट के ट्रस्टी थे। उत्तरदाताओं का दावा था कि अपीलकर्ताओं को हटा दिया गया है और उन्होंने सिविल कोर्ट में स्थायी निषेधाज्ञा (perpetual injunction) का मुकदमा दायर किया, जिससे उन्हें ट्रस्ट संचालित स्कूल में प्रवेश और हस्तक्षेप करने से रोका जा सके।

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ट्रायल कोर्ट ने 13 अप्रैल 2022 को आर्डर VII रूल 11 सीपीसी के तहत मुकदमा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह धारा 92 सीपीसी के तहत barred है। उत्तरदाताओं ने अपील दायर की, लेकिन सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने एडवोकेट विपिन सोढ़ी को मध्यस्थ (arbitrator) नियुक्त करने पर सहमति जताई।

30 दिसंबर 2022 को मध्यस्थ ने पुरस्कार (award) जारी किया, जिसमें ट्रस्ट के प्रबंधन की व्यवस्था तय की गई। दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया और जिला न्यायालय में समझौता-पत्र (compromise deed) दाखिल किया। जिला न्यायालय ने 27 जनवरी 2023 को अपील को पुरस्कार के आधार पर निपटा दिया।

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"हम दोनों पक्ष पुरस्कार को स्वीकार करते हैं और यह हमारे लिए बाध्यकारी होगा। हम इसे चुनौती नहीं देंगे और सच्ची नीयत से पालन करेंगे," संयुक्त आवेदन में कहा गया।

इस डिक्री को कभी चुनौती नहीं दी गई।

अपीलकर्ताओं ने डिक्री के अनुसार कदम उठाए, लेकिन आरोप लगाया कि उत्तरदाताओं ने अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कीं। उन्होंने नवंबर 2023 में क्रियान्वयन कार्यवाही दायर की, जिसे बाद में वापस लेकर धारा 9, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत अंतरिम राहत मांगी।

वाणिज्यिक न्यायालय ने (मई 2024) धारा 92 सीपीसी के तहत विवाद को गैर-मध्यस्थनीय (non-arbitrable) मानते हुए पुरस्कार को शून्य घोषित कर दिया। हाई कोर्ट ने (अगस्त 2024) इस फैसले को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उत्तरदाता, अपने आचरण से प्रतिबंधित (estopped by conduct) हैं और एक बार पुरस्कार को स्वीकार करके और उसका लाभ लेकर उसकी वैधता पर सवाल नहीं उठा सकते।

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अदालत ने approbate और reprobate के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि कोई पक्ष अपने लाभ के लिए फैसले को स्वीकार कर, बाद में सुविधा के अनुसार उससे मुकर नहीं सकता।

अदालत ने कहा कि निचली अदालतें सहमति डिक्री के कानूनी प्रभाव और उत्तरदाताओं के आचरण को सही तरीके से नहीं समझ पाईं।

सुप्रीम कोर्ट ने:

  • वाणिज्यिक न्यायालय और हाई कोर्ट के आदेश रद्द किए।
  • क्रियान्वयन कार्यवाही (Misc. Case No. 122 of 2023) को पुनर्जीवित करने की अनुमति दी।
  • निर्देश दिया कि क्रियान्वयन को कानून के अनुसार मेरिट पर तय किया जाए।

"जब सहमति डिक्री को चुनौती नहीं दी गई है, तब अपीलकर्ताओं को बिना उपाय के नहीं छोड़ा जा सकता," पीठ ने कहा।

मामले का शीर्षक: संजीत सिंह सलवान एवं अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं अन्य

मामले का प्रकार: सिविल अपील (विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 29398/2024 से उत्पन्न)

उद्धरण: 2025 आईएनएससी 988

निर्णय की तिथि: 14 अगस्त 2025

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