भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ द्वारा दिए गए एक फैसले में ए. रंजीतकुमार और ई. कविता के विवाह को भंग कर दिया है, जिससे 15 साल पुराना कानूनी विवाद समाप्त हो गया है। यह फैसला तब आया जब न्यायालय ने पाया कि 2010 से अलग रह रहे इस जोड़े के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है।
यह जोड़ा 15 फरवरी 2009 को विवाह बंधन में बंधा और बाद में अमेरिका चला गया, जहां पति कार्यरत था। अप्रैल 2010 में उनके बेटे का जन्म हुआ। सितंबर 2012 में पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) और (ib) के तहत क्रूरता और व्यभिचार के आधार पर तलाक की अर्जी दी। परिवार न्यायालय ने अक्टूबर 2016 में क्रूरता के आधार पर तलाक दे दिया, लेकिन व्यभिचार का आरोप साबित नहीं हुआ।
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पत्नी ने इस आदेश को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने अगस्त 2018 में तलाक को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि पति का मुख्य आरोप - पत्नी के पिता की अभद्र टिप्पणियां - पत्नी पर आरोपित नहीं की जा सकतीं। इस बीच, अपील लंबित रहते हुए, मार्च 2017 में पति ने दूसरी शादी कर ली।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले मध्यस्थता का प्रयास किया, जो असफल रहा। कोर्ट ने कहा कि शादी "अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुकी है" और दोनों में कोई मेल-मिलाप की इच्छा नहीं है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए विवाह को समाप्त किया जाता है।
“वे लगभग 15 वर्षों से अलग रह रहे हैं। उनके बीच वैवाहिक संबंध का कोई अंश भी शेष नहीं है,” कोर्ट ने कहा।
इसके साथ ही कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी और बेटे को एकमुश्त ₹1.25 करोड़ गुजारा भत्ता दे। कोर्ट ने यह भी कहा कि पति ने इन वर्षों में कोई आर्थिक सहायता नहीं दी। यह राशि ₹25 लाख की पाँच समान तिमाही किस्तों में दी जाएगी, जिसकी पहली किस्त 15 सितंबर 2025 और अंतिम किस्त 15 सितंबर 2026 तक देनी होगी।
कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर कोई किस्त समय पर नहीं दी गई तो आदेश रद्द कर दिया जाएगा और पहले दी गई राशि जब्त कर ली जाएगी। मद्रास हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए अपील को मंजूरी दे दी गई।
केस का शीर्षक:- ए. रंजीतकुमार बनाम ई. कविता