भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मकान मालिक के कानूनी उत्तराधिकारियों की अपील स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार भूमि को गैर-कृषि घोषित कर दिया जाए तो मामला सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है, भले ही मुकदमा उस समय दायर हुआ हो जब घोषणा लंबित थी।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद 1970 से जुड़ा है, जब बुलंदशहर की एक भूमि ₹150 मासिक किराये पर किरायेदारों के पूर्वज को इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप लगाने के लिए दी गई थी। पंजीकृत किरायानामा में स्पष्ट उल्लेख था कि किराया न चुकाने पर मकान मालिक को बेदखली और बकाया वसूली का अधिकार होगा। जून 1972 के बाद किराया न मिलने पर मकान मालिक ने 1974 में बेदखली और बकाया किराये का मुकदमा दायर किया।
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किरायेदारों ने दलील दी कि भूमि कृषि है और इस पर सुनवाई केवल राजस्व न्यायालय कर सकता है। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 1976 में यह आपत्ति खारिज कर दी और कहा कि भूमि का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए हो रहा है। 1981 में मुकदमा डिक्री कर दिया गया, लेकिन बाद की अपीलों ने मामला जटिल कर दिया।
प्रथम अपीलीय न्यायालय ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 (UPZALR Act) की धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि भूमि को धारा 143 के तहत गैर-कृषि घोषित नहीं किया गया था, इसलिए सिविल कोर्ट के पास अधिकार नहीं है। 2024 में हाईकोर्ट ने भी यही राय दी और सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 7 नियम 10 के तहत वादपत्र वापस करने का आदेश दिया।
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न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने अपील पर सुनवाई की और मामले के लंबे इतिहास की सावधानीपूर्वक जांच की। न्यायालय ने कहा कि गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग करने की प्रारंभिक मंजूरी 1975 में दी गई थी, और अपील की लंबितता के दौरान 1986 में अंतिम घोषणा की गई थी।
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने फैसला सुनाते हुए कहा:
"अपील कार्यवाही की निरंतरता है, और यदि कोई बाद की घटना मामले की जड़ को प्रभावित करती है तो उसे माना जाना चाहिए ताकि बार-बार मुकदमेबाजी से बचा जा सके।"
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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 145 के तहत पंजीकरण की जिम्मेदारी राजस्व अधिकारियों की है, न कि भूमि मालिक की। इसलिए, पंजीकरण न होने से घोषणा अमान्य नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मामले को प्रथम अपीलीय न्यायालय के पास मेरिट्स पर सुनवाई के लिए वापस भेज दिया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि आधी सदी से लंबित इस मुकदमे का निपटारा छह महीने में किया जाए।
केस का शीर्षक: महेश चंद (मृत) थ्रू LR(s) बनाम ब्रिजेश कुमार और अन्य।
केस संख्या: 2025 की सिविल अपील संख्या 10256