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न्याय के सिद्धांत का पतन : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार लगाई, नागरिक मामलों को आपराधिक केस में बदलने की प्रवृत्ति पर जताई नाराजगी

7 Apr 2025 5:09 PM - By Shivam Y.

न्याय के सिद्धांत का पतन : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार लगाई, नागरिक मामलों को आपराधिक केस में बदलने की प्रवृत्ति पर जताई नाराजगी

7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को नागरिक विवादों को बार-बार आपराधिक मामलों में बदलने पर कड़ी आलोचना की और इसे "कानून के शासन का पूर्ण पतन" करार दिया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि यह चलन जारी रहा, तो उत्तर प्रदेश राज्य पर आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार, और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता पर आपराधिक विश्वासघात, आपराधिक धमकी, और आपराधिक साजिश का आरोप था। याचिकाकर्ता के खिलाफ पहले से ही धारा 138, एनआई एक्ट के तहत चेक बाउंस के मामले में कार्यवाही चल रही थी।

कोर्ट ने पाया कि यह मामला असल में पैसे के लेन-देन से जुड़ा हुआ नागरिक विवाद था और इस पर कोई आपराधिक अपराध नहीं बनता।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा:
"यह गलत है! यूपी में क्या हो रहा है? हर दिन नागरिक मामले आपराधिक मामलों में बदले जा रहे हैं। यह सही नहीं है! यह तो कानून के शासन का पूरा पतन है!"

कोर्ट ने यह भी कहा कि समन आदेश खुद ही कानूनी रूप से गलत है क्योंकि पैसे न लौटाने को आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता।

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मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि जांच अधिकारी (IO) के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सकती है, क्योंकि उन्होंने Sharif Ahmed बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के फैसले में कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया।

सीजेआई ने चेतावनी दी:
"मैं उसे तलब करूँगा, शायद उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करूँगा।"

Sharif Ahmed केस में, न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने यह निर्देश दिया था कि जांच अधिकारी को चार्जशीट के हर कॉलम में पूरी और स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए। इससे अदालत समझ सके कि किस आरोपी ने कौन-सा अपराध किया और उसके खिलाफ क्या सबूत हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा था:

  • धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान और गवाहों की सूची के साथ संबंधित दस्तावेज चार्जशीट में शामिल किए जाएं।
  • हर आरोपी की भूमिका अलग-अलग और स्पष्ट रूप से लिखी जाए।

अब की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि IO यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि यह मामला आपराधिक कैसे बनता है।

सीजेआई ने कहा:
"हमने स्पष्ट कर दिया है कि उसे यह केस डायरी में विस्तार से दर्ज करना होगा, लेकिन उसने नहीं किया। अगर केस डायरी आती है, तो IO को गवाही के लिए खड़ा होना होगा और कहना होगा कि यह अपराध है... यह हास्यास्पद है, केवल पैसे न देना अपराध नहीं बनता... मैं कहूँगा कि IO गवाही के लिए खड़ा हो... उसे सबक सिखाने की जरूरत है, ऐसे चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती।"

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राज्य के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में एफआईआर रद्द करने की मांग नहीं की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं हुआ।

सीजेआई ने टिप्पणी की:
"यह अजीब है कि यूपी में हर दिन ऐसा हो रहा है। वकील भूल चुके हैं कि नागरिक अधिकार क्षेत्र भी होता है।"

CJI ने यह भी कहा कि Sharif Ahmed फैसले का पालन जरूरी है और इसके लिए DGP को खुद पहल करनी चाहिए।

जब राज्य के वकील ने Sharif Ahmed केस का आधिकारिक हवाला देने के लिए समय मांगा, तो कोर्ट ने उसे मंजूरी दी, लेकिन साथ में यह भी स्पष्ट किया कि अनुपालन जरूरी है।

सीजेआई ने कहा:
"मैं DGP से हलफनामा मांगने वाला हूँ, उसके बाद क्या करना है देखेंगे... और जो अगला केस आएगा, उसमें हम जुर्माना लगाएंगे, किसी और पर नहीं बल्कि पुलिस पर।"

बाद में जब मामला फिर से उठा, तो पीठ ने निम्नलिखित निर्देश दिए:

कोर्ट के आदेश के मुख्य बिंदु:

  • इस केस में चार्जशीट, समन आदेश, और संज्ञान आदेश Sharif Ahmed के निर्णय के खिलाफ हैं।
  • यूपी के डीजीपी और संबंधित थाने के एसएचओ/जांच अधिकारी को एक हलफनामा दाखिल करना होगा जिसमें बताया जाए कि Sharif Ahmed के फैसले का पालन किया गया है या नहीं।
  • यह हलफनामा दो सप्ताह के भीतर दाखिल करना होगा।
  • जब तक यह हलफनामा दाखिल नहीं हो जाता, ट्रायल कोर्ट में सभी आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही स्थगित रहेगी।
  • धारा 138 एनआई एक्ट के तहत चल रही कार्यवाही (जो इस याचिका का हिस्सा नहीं है) जारी रहेगी।

जब राज्य के वकील ने अनुरोध किया कि आदेश केवल DGP तक ही सीमित रखा जाए, तो CJI ने सख्ती से जवाब दिया:

सीजेआई ने कहा:
"उन्हें हलफनामा दाखिल करने दो। यह कानून के शासन का पूर्ण पतन है। नागरिक मामलों को आपराधिक मामलों में बदलना स्वीकार्य नहीं है। और यदि अनुपालन नहीं हो रहा है, तो इसे सुनिश्चित करने के लिए जुर्माना लगाया जाएगा।"

अंत में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि DGP को यह बताना होगा कि Sharif Ahmed फैसले के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

अब इस मामले की सुनवाई मई में होगी।

केस विवरण: देबू सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 3620/2025