सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पटना हाईकोर्ट के एक अग्रिम जमानत आदेश में लगाई गई उस शर्त को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि जैसे ही चार्जशीट दाखिल होगी, आरोपी को गिरफ्तार किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने इस शर्त को अनुचित माना और कहा कि ट्रायल कोर्ट को मामले की परिस्थितियों के अनुसार गिरफ्तारी के बारे में निर्णय लेने का विवेकाधिकार होना चाहिए।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने फैसला सुनाया कि हाईकोर्ट को यह निर्णय ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए था कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद आरोपी के खिलाफ कोई जबरदस्ती की कार्रवाई आवश्यक है या नहीं।
न्यायिक टिप्पणी:
"याचिकाकर्ता के वकील सही हैं कि चार्जशीट दाखिल होते ही आरोपी को हिरासत में लेने के लिए कोई अनिवार्य आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट को इसे ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए था ताकि याचिकाकर्ता की पेशी के बाद मामले की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लिया जा सके।"
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पटना हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया था:
"यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि चार्जशीट में याचिकाकर्ता को अपराध से जोड़ा जाता है, तो वर्तमान अग्रिम जमानत आदेश का प्रभाव समाप्त हो जाएगा और ट्रायल कोर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा कि याचिकाकर्ता जेल में रहे।"
इस आदेश ने पूर्व में दी गई अग्रिम जमानत को प्रभावहीन बना दिया और आरोपी की गिरफ्तारी को अनिवार्य कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त को अनुचित पाते हुए इसमें संशोधन किया और इसे ट्रायल कोर्ट के विवेक पर छोड़ दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में बड़े बदलाव किए बिना केवल उस हिस्से को संशोधित किया जिसमें चार्जशीट दाखिल होते ही गिरफ्तारी की अनिवार्यता तय की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब जब चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, तो याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होना होगा, और ट्रायल कोर्ट इस मामले पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निर्णय करेगा।
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अदालत ने आगे आदेश दिया:
"याचिकाकर्ता को तीन सप्ताह के भीतर संबंधित अदालत के समक्ष उपस्थित होना होगा। तब तक, इस न्यायालय द्वारा दिनांक 25.11.2024 को दी गई अंतरिम सुरक्षा जारी रहेगी।"
यह फैसला स्पष्ट करता है कि अदालतें जमानत की उचित शर्तें लगा सकती हैं, लेकिन वे ऐसे सामान्य आदेश पारित नहीं कर सकतीं जो न्यायिक विवेक को कमजोर करें। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक मामले को उसकी विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर आंका जाए, और केवल चार्जशीट दाखिल होने के आधार पर स्वचालित गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।
मामले का शीर्षक: रितेश कुमार बनाम बिहार राज्य
- याचिकाकर्ता के वकील: श्री कुमार परिमल, अधिवक्ता; श्री स्मरहर सिंह, एओआर
- प्रतिवादी के वकील: श्री अंशुल नारायण, अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता; श्री प्रेम प्रकाश, एओआर; श्री अमित प्रताप शौनक, अधिवक्ता