सोमवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की कार्यवाही को राजनीतिक रंग देने के प्रयास पर सख्त चेतावनी दी। यह याचिका आत्मदीप, एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर की गई है, जिसमें मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष 2016 के शिक्षक भर्ती घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर की गई टिप्पणी को आपत्तिजनक बताया गया है।
यह मामला मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश हुआ, जिसमें न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया भी शामिल थे।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनींदर सिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई कुछ समय के लिए टाल दी जाए क्योंकि इस याचिका के लिए अटॉर्नी जनरल की अनुमति प्राप्त करने हेतु पहले ही आवेदन किया गया है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
“क्या आप इतने सुनिश्चित हैं कि आपको अनुमति मिल जाएगी? कोर्ट में राजनीतिकरण की कोशिश मत कीजिए; अपनी राजनीतिक लड़ाई कहीं और लड़िए।”
इसके बाद पीठ ने मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
यह अवमानना याचिका मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दिए गए उन बयानों से संबंधित है, जो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद दिए थे, जिसमें 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (SSC) द्वारा की गई लगभग 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षकीय कर्मियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया था।
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इस वर्ष अप्रैल में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजिव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा था:
“चयन प्रक्रिया धोखाधड़ी से ग्रसित थी और पूरी तरह से दूषित थी।”
इस आधार पर कोर्ट ने सभी नियुक्तियों को एक साथ रद्द करने के फैसले को सही ठहराया।
मुख्यमंत्री द्वारा इस निर्णय के बाद दिए गए बयान अब न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप में अदालत की अवमानना के तहत जांच के दायरे में हैं।
मामले का शीर्षक: आत्मदीप (एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट) बनाम ममता बनर्जी
डायरी नंबर: 21869/2025