भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर सवाल उठाए, जिसमें समाचार एजेंसी एशियन न्यूज इंटरनेशनल (ANI) द्वारा विकिमीडिया फाउंडेशन के खिलाफ दायर मानहानि मामले से संबंधित विकिपीडिया पेज को हटाने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश की कानूनी वैधता पर सवाल उठाते हुए मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी के महत्व को रेखांकित किया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूयान की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालती कार्यवाही पर टिप्पणियाँ और आलोचना असामान्य नहीं हैं। न्यायमूर्ति ओका ने कहा:
"इस कोर्ट में हम बहुत कुछ कहते हैं, और लोग उस पर टिप्पणी करते हैं... ऐसा होता है। कभी-कभी कोई कहता है कि आप पूर्व निर्धारित मानसिकता के साथ बैठे हैं या आप सुनवाई नहीं दे रहे हैं। लोग बातें कहते हैं, और हमें इसे सहन करना पड़ता है।"
पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 5 में दिए गए निर्देशों की वैधता पर चिंता व्यक्त की और कहा कि केवल अदालती टिप्पणियों की आलोचना के कारण किसी सामग्री को हटाने का आदेश उचित नहीं हो सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की पीठ ने विकिपीडिया पेज एशियन न्यूज इंटरनेशनल बनाम विकिमीडिया फाउंडेशन को हटाने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने पाया कि इस पेज पर की गई कुछ टिप्पणियाँ प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण थीं, खासकर वह बयान जिसमें कहा गया था कि एक न्यायाधीश ने भारत में विकिपीडिया को बंद करने की धमकी दी थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो विकिमीडिया का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने हाईकोर्ट के आदेश का कड़ा विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया:
"यह संभव ही नहीं है। संबंधित सामग्री विकिमीडिया द्वारा बनाई गई नहीं थी, बल्कि इसे इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख से लिया गया था।"
न्यायमूर्ति ओका ने इन तर्कों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब तक किसी सामग्री को कानूनी प्रक्रिया के तहत अवमाननापूर्ण नहीं ठहराया जाता, तब तक केवल न्यायालय की आलोचना के आधार पर उसे हटाने का निर्देश देना उचित नहीं होगा।
"हम समझ सकते हैं कि यदि अवमानना का मामला बनता है और नोटिस जारी होने के बाद अवमानना साबित होती है। लेकिन यदि किसी ने कोर्ट की किसी टिप्पणी की आलोचना की है और उसे हटाने को कहा जाए, तो यह सही नहीं होगा।"
ANI के वकील ने दलील दी कि विवादास्पद बयान देने वाले व्यक्ति अदालत में उपस्थित नहीं थे। इस पर न्यायमूर्ति ओका ने कहा:
"आप एक महत्वपूर्ण बिंदु को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। अंततः यह मीडिया की स्वतंत्रता का मामला है।"
कोर्ट ने ANI को महीने के अंत तक सही लेख की प्रति रिकॉर्ड पर लाने के लिए जवाबी हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी।
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मामले की पृष्ठभूमि
यह कानूनी विवाद ANI द्वारा विकिपीडिया के खिलाफ दायर मानहानि मुकदमे से उत्पन्न हुआ, जिसमें ANI ने आरोप लगाया कि विकिपीडिया पेज पर उसके संपादकीय दृष्टिकोण और विश्वसनीयता को लेकर गलत जानकारी दी गई है। ANI ने 2 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए विकिपीडिया से सामग्री हटाने की अपील की थी। इसके अलावा, दिल्ली हाईकोर्ट ने विकिमीडिया को उन तीन व्यक्तियों का विवरण प्रकट करने का आदेश दिया, जिन्होंने ANI के विकिपीडिया पेज को संपादित किया था—जिसे विकिमीडिया ने चुनौती दी।
11 नवंबर 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने विकिमीडिया की अपील को बंद कर दिया, जिसमें एकल न्यायाधीश द्वारा संपादकों का विवरण उजागर करने का आदेश दिया गया था। यह निर्णय दोनों पक्षों के बीच सहमति आदेश के बाद आया, जिसमें विकिपीडिया को संबंधित व्यक्तियों को समन भेजने की अनुमति दी गई, जबकि ANI का मानहानि मामला विधि अनुसार आगे बढ़ाया गया।
विवादास्पद विकिपीडिया पेज को हटाने के बाद, दिल्ली हाईकोर्ट ने विकिमीडिया के खिलाफ ANI की अवमानना याचिका भी बंद कर दी। इसके बाद, हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उन तीन व्यक्तियों को समन जारी किया, जिन्होंने ANI के विकिपीडिया पेज को संपादित किया था।
मामले का विवरण:
- मामला संख्या: डायरी संख्या 2483 / 2025
- मामले का शीर्षक: विकिमीडिया फाउंडेशन इंक बनाम एएनआई मीडिया प्राइवेट लिमिटेड