इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हमले की शिकायत खारिज की, न्यायिक रिकॉर्ड में अभद्र भाषा से बचने का निर्देश

By Vivek G. • October 7, 2025

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हमले की शिकायत खारिज की, यूपी के सभी जजों को अभद्र भाषा से बचने का निर्देश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संत्रीपा देवी द्वारा दायर उस आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी हमले की शिकायत को ठुकराने के आदेश को चुनौती दी थी। हालांकि अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन न्यायमूर्ति हरवीर सिंह ने न्यायिक कार्यवाही में “फूहड़ और अभद्र भाषा” के प्रयोग पर कड़ी नाराज़गी जताई। उन्होंने निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारी अपने आदेशों और रिकॉर्ड में गरिमा और शालीनता बनाए रखें।

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पृष्ठभूमि

यह मामला वाराणसी की संत्रीपा देवी द्वारा दायर एक शिकायत से जुड़ा था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उन पर हमला किया गया और आरोपी दीक्षित सिंह ने तमंचे की नोक पर उनका मंगलसूत्र छीन लिया। विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम), वाराणसी ने अगस्त 2024 में सबूतों की कमी का हवाला देते हुए शिकायत को खारिज कर दिया था।

संतुष्ट न होकर देवी ने हाईकोर्ट का रुख किया। उनका कहना था कि ट्रायल जज ने उनके बयान और उनके दो गवाहों के बयान (जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 और 202 के तहत दर्ज हुए थे) पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चिकित्सकीय रिपोर्ट उनके हमले के दावे की पुष्टि करती है।

अदालत के अवलोकन

सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता और गवाहों के बयानों में कई विसंगतियाँ हैं। न्यायमूर्ति सिंह ने टिप्पणी की, “तीनों गवाहों के बयान असंगत और निरंतरता से रहित हैं, जिससे प्रथम दृष्टया मामला बनता नहीं दिखता।” उन्होंने कहा कि जहाँ शिकायतकर्ता ने तमंचे के इस्तेमाल की बात कही, वहीं अन्य गवाहों ने इसकी पुष्टि नहीं की। साथ ही चिकित्सकीय रिपोर्ट में दर्ज मामूली चोटों के हथियार के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी।

राज्य पक्ष के इस तर्क को भी अदालत ने स्वीकार किया कि “केवल आरोप लगाने से किसी को तलब नहीं किया जा सकता, जब तक कि ठोस साक्ष्य न हों।”

हालांकि, न्यायमूर्ति सिंह ने ट्रायल कोर्ट के आदेश और गवाहों के बयानों में प्रयुक्त अनुचित भाषा पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि “फूहड़ और अभद्र शब्द” रिकॉर्ड में शामिल किए गए, जो सर्वोच्च न्यायालय और स्वयं हाईकोर्ट के बार-बार दिए गए निर्देशों के विपरीत है। पीठ ने कहा, “न्यायिक आदेशों में प्रयुक्त भाषा में पद की गरिमा और मर्यादा झलकनी चाहिए,” यह जोड़ते हुए कि गवाही में चाहे कितने भी आपत्तिजनक शब्द हों, उन्हें दोहराए बिना मर्यादित भाषा में दर्ज किया जाना चाहिए।

निर्णय

विशेष न्यायाधीश के आदेश में किसी कानूनी त्रुटि को न पाते हुए, हाईकोर्ट ने संत्रीपा देवी की पुनरीक्षण याचिका को “गैर-युक्तिसंगत” बताते हुए खारिज कर दिया। साथ ही न्यायमूर्ति सिंह ने एक व्यापक निर्देश जारी किया - कि इस आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को भेजी जाए।

अदालत ने जोर देकर कहा कि न्यायिक अधिकारियों को संयम रखना चाहिए और गवाहों या पक्षकारों के बयानों में आई अशोभनीय भाषा को सीधे अपने आदेशों में उद्धृत करने से बचना चाहिए। न्यायमूर्ति सिंह ने स्पष्ट किया, “यह आदेश नकारात्मकता में नहीं, बल्कि सकारात्मक भावना में दिया जा रहा है न्यायपालिका की गरिमा की याद दिलाने के लिए।”

Case Title: Santreepa Devi vs State of Uttar Pradesh & Others

Case No.: Criminal Revision No. 4710 of 2024

Date of Judgment: September 10, 2025

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