इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मंगलवार को बलरामपुर पुलिस को तीखी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में दायर “चौंकाने वाला” झूठा हलफनामा न्यायिक प्रक्रिया को धूमिल करता है। न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की पीठ ने यह भी संकेत दिया कि सच को सामने लाने की जगह जांच एजेंसियां शायद उल्टी दिशा में जा रही हैं।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता अंजन कुमार ने 22 अक्टूबर 2024 को थाना ललिया, जनपद बलरामपुर में एफआईआर दर्ज कराई थी। जांच में उचित कार्रवाई न दिखने पर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और जांच स्थानांतरित करने की मांग की।
इसके बाद 17 नवंबर 2025 को अदालत ने पुलिस अधीक्षक, बलरामपुर से जांच की प्रगति पर व्यक्तिगत हलफनामा मांग लिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
हलफनामा आने के बाद पीठ ने साफ़ कहा:
“व्यक्तिगत हलफनामा… चौंकाने वाला पाया गया!”
हलफनामे में कहा गया कि पीड़िता के दो विरोधाभासी बयान हैं और इसलिए पीड़िता व उसके पिता का पॉलीग्राफ टेस्ट आवश्यक है।
परंतु अदालत को उसमें बड़ी गड़बड़ी मिली:
- हलफनामा 02 दिसंबर 2025 को शपथित किया गया
- लेकिन उसमें यह झूठ कहा गया कि पॉलीग्राफ टेस्ट पर आवेदन लंबित है
- जबकि निचली अदालत 01 दिसंबर 2025 को ही उस आवेदन को खारिज कर चुकी थी!
पीठ ने सख़्त लहजे में कहा:
“पूरे तथ्यों को देखे बिना झूठा हलफनामा दाख़िल किया गया।”
अदालत ने आगे यह भी बताया कि पहले पीड़िता ने 28.10.2024 को बयान दिया था लेकिन उसने कहा कि वह पुलिस व आरोपी के दबाव में था। इसलिए POCSO कोर्ट ने 08.01.2025 को उसका बयान पुनः दर्ज करने का आदेश दिया। नया बयान 19.03.2025 को दर्ज किया गया जिसमें दुष्कर्म के आरोप स्पष्ट हैं।
फिर भी हैरानी की बात यह रही कि-
- आरोपी नहीं, बल्कि राज्य सरकार ने ही इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी
- और पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट पर ज़िद कर रही है
पीठ ने सीधी टिप्पणी की:
राज्य को पीड़िता की दुबारा गवाही से कैसे आपत्ति हो सकती है, समझ से परे है।
अदालत ने सवाल उठाया कि जब बयान दबाव में दिए जाने की बात स्वीकार कर ली गई है, तो फिर पीड़िता की विश्वसनीयता पर दोबारा संदेह क्यों?
अदालत का आदेश
इन “चौंकाने वाले पहलुओं” को देखते हुए अदालत ने प्रमुख सचिव (गृह), उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया कि:
- झूठे हलफनामे के पीछे क्या कारण थे?
- पॉलीग्राफ टेस्ट की ज़िद क्यों?
- राज्य सरकार पीड़िता के हित के आदेश को क्यों चुनौती दे रही है?
इन सभी बिंदुओं पर एक सप्ताह में व्यक्तिगत हलफनामा दाख़िल करना होगा।
अन्यथा, 15 दिसंबर 2025 को प्रमुख सचिव (गृह) स्वयं रिकॉर्ड सहित व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों।
Case Title:- Anjan Kumar vs. State of U.P. through Addl. Chief Secretary Home, Lucknow & 3 Others
Case Number:- Criminal Misc. Writ Petition No. 10736 of 2025
Petitioner's Counsel:- Saksham Agarwal, Anupriya Agarwal, Pradeep Kumar Mishra, Rakesh Kumar Agarwal
Respondent's Counsel:- Government Advocate (G.A.)