इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ खंडपीठ ने एक दिव्यांग नीट अभ्यर्थी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि उसे कानूनन उपलब्ध आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने 7 अगस्त 2025 को फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत जारी यूनिक डिसएबिलिटी आईडी (UDID) प्रमाणपत्र चिकित्सा बोर्डों द्वारा की गई पुनर्मूल्यांकन पर वरीयता रखेगा।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, माज़ अहमद, लोकमो्टर दिव्यांगता से पीड़ित हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बहराइच ने उनकी 70% स्थायी दिव्यांगता प्रमाणित की थी। उन्हें 2023 में UDID कार्ड जारी किया गया, जिसमें उन्हें "बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्ति” के रूप में मान्यता दी गई। नीट-यूजी 2025 परीक्षा में पीडब्ल्यूबीडी श्रेणी में अखिल भारतीय रैंक 997 प्राप्त करने के बाद अहमद ने उत्तर प्रदेश में काउंसलिंग के लिए आवेदन किया। लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नामित मेडिकल बोर्ड ने उनकी दिव्यांगता केवल 31% आंकी, जिससे वे आरक्षण की 40% न्यूनतम सीमा से बाहर हो गए।
अहमद ने इस पुनर्मूल्यांकन को चुनौती दी और कहा कि यह उनके वैध UDID प्रमाणपत्र को कमजोर करता है। उनके वकीलों ने ओम राठौड़ बनाम डीजीएचएस (2024) जैसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि दिव्यांग अधिकार कोई दान नहीं बल्कि कानूनी अधिकार हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही कहा था कि प्रतिशत के आधार पर कठोर गणना करने के बजाय यह देखना जरूरी है कि अभ्यर्थी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने में कार्यात्मक रूप से सक्षम है या नहीं।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति भाटिया ने सर्वोच्च न्यायालय की ही बात दोहराई:
"किसी व्यक्ति की दिव्यांगता समाज की अक्षमता का प्रतिबिंब है, न कि उस व्यक्ति पर टिप्पणी।"
अदालत ने यह भी कहा कि पात्रता तय करने का आधार केवल अंकों की गणना नहीं, बल्कि कार्यात्मक क्षमता होना चाहिए।
पीठ ने माना कि चूँकि याचिकाकर्ता को कार्यात्मक रूप से चिकित्साशास्त्र पढ़ने के योग्य घोषित किया गया है, इसलिए उनका UDID प्रमाणपत्र आरक्षण लाभ के लिए मान्य होगा। अदालत ने निदेशक, चिकित्सा शिक्षा को निर्देश दिया कि अहमद का पंजीकरण अपलोड किया जाए और नीट काउंसलिंग में उनके आवेदन पर विचार किया जाए।
केस का शीर्षक: माज़ अहमद बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस संख्या: Writ – C No. 7585 of 2025