बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2012 पुणे सीरियल ब्लास्ट केस के आरोपी फारूक शौकत बगवान को जमानत दे दी। जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि बगवान पिछले साढ़े बारह साल से जेल में हैं और ट्रायल खत्म होने की कोई संभावना जल्द नज़र नहीं आती। अदालत ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 2021 में उनकी जमानत याचिका खारिज की गई थी।
पृष्ठभूमि
1 अगस्त 2012 की शाम पुणे शहर में पांच कम तीव्रता वाले धमाके हुए थे। इन विस्फोटों में एक व्यक्ति घायल हुआ और शहर में दहशत फैल गई। जांच एटीएस (एंटी टेररिज़्म स्क्वॉड) को सौंपी गई, जिसने दावा किया कि ये विस्फोट इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े कतिल सिद्दीकी की जेल में हत्या का बदला लेने के लिए किए गए थे।
इसी सिलसिले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें फारूक बगवान भी शामिल थे। उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने कंप्यूटर पर फर्जी दस्तावेज़ बनाए जिनका इस्तेमाल मोबाइल सिम कार्ड लेने में किया गया। साथ ही यह भी आरोप था कि उन्होंने अपनी दुकान की जगह सह-आरोपियों को साजिश रचने के लिए उपलब्ध कराई। उनके खिलाफ आईपीसी, यूएपीए और मकोका जैसी सख्त धाराओं में केस दर्ज किया गया।
अदालत की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने कहा कि बगवान 26 दिसंबर 2012 से जेल में हैं और अब तक 12 साल से अधिक समय गुजर चुका है। कुल 170 गवाहों में से केवल 27 की ही गवाही दर्ज हुई है। बचाव पक्ष ने यह भी दलील दी कि सह-आरोपी मुनिब इक़बाल मेमन को पिछले साल जमानत मिल चुकी है, जबकि आरोप लगभग समान हैं।
राज्य पक्ष ने इसका विरोध किया और कहा कि बगवान की भूमिका गंभीर थी। लेकिन खंडपीठ ने विलंब को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा, “आरोपी का त्वरित सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। ऐसे में लगातार कैद को उचित नहीं ठहराया जा सकता।”
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के Union of India बनाम के.ए. नजीब फैसले का हवाला देते हुए कहा कि विशेष कानूनों की कठोरता तब कम हो जाती है जब ट्रायल लंबे समय तक पूरा न हो और आरोपी पहले से लंबी कैद झेल चुका हो।
हाईकोर्ट ने विशेष अदालत का आदेश रद्द करते हुए बगवान को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और स्थानीय जमानतदार पर रिहा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने शर्त रखी कि वह हर महीने के पहले शनिवार को एटीएस दफ्तर में हाजिरी देंगे, पासपोर्ट जमा करेंगे और मुंबई तथा पुणे जिलों की सीमा से बाहर बिना अनुमति नहीं जाएंगे।
न्यायालय ने साफ किया कि अगर बगवान इन शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो उनकी जमानत रद्द की जा सकती है। इस आदेश के बाद फारूक बगवान साढ़े बारह साल जेल में रहने के बाद रिहाई की उम्मीद कर सकते हैं, हालांकि ट्रायल अभी जारी रहेगा।
केस शीर्षक : फारूक शौकत बगवान बनाम महाराष्ट्र राज्य
केस संख्या: Criminal Appeal No. 300 of 2024