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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अविवाहित बहन की संपत्ति विवाद याचिका बहाल की, भाई के पक्ष में हुए गिफ्ट डीड पर सवाल

Shivam Y.

कु. दीपिका रानी बनाम विनय बंसल - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दीपिका रानी के भाई विनय बंसल के खिलाफ संपत्ति के मुकदमे को बहाल कर दिया, तथा उनके दावे को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अविवाहित बहन की संपत्ति विवाद याचिका बहाल की, भाई के पक्ष में हुए गिफ्ट डीड पर सवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हापुड़ के एक भाई-बहन के बीच संपत्ति विवाद में नई जान डाल दी है। न्यायमूर्ति संदीप जैन ने 19 सितम्बर 2025 को आदेश दिया कि निचली अदालत ने गलत तरीके से कहा था कि अविवाहित बेटी कुमारी दीपिका रानी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं है। अदालत ने उनकी घोषणा संबंधी वाद को बहाल कर सुनवाई के लिए भेज दिया।

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पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता दीपिका रानी, स्वर्गीय महावीर प्रसाद की अविवाहित बेटी हैं। 2002 में पिता की मृत्यु के बाद उनकी विधवा, बेटियाँ और बेटा विनय बंसल हापुड़ स्थित दोमंज़िला मकान के उत्तराधिकारी बने। दीपिका का कहना था कि उसमें उनकी 1/7 हिस्सेदारी है। वह अपना हिस्सा बेचकर एक आश्रम बनाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने शुरू में भाई को पावर ऑफ अटॉर्नी दी, पर जब तय पैसे नहीं मिले तो उसे रद्द कर दिया।

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इसके तुरंत बाद, उनका आरोप है कि विनय ने तहसील दफ्तर में उन्हें धोखे से ऐसे कागजों पर हस्ताक्षर कराए, जो बाद में गिफ्ट डीड निकले। उन्होंने कहा कि बिना पढ़े ही हस्ताक्षर कर दिए, यह सोचकर कि यह सिर्फ एग्रीमेंट टू सेल है। बाद में पता चला कि उनका हिस्सा भाई के नाम हो चुका है और उन्हें कोई भुगतान भी नहीं मिला।

अदालत की टिप्पणियाँ

2016 में निचली अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत उसके मुकदमे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि चूँकि उसके पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 के संशोधन से पहले हो गई थी, इसलिए उसे संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। लेकिन उच्च न्यायालय ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया।

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले वीनेटा शर्मा बनाम राकेश शर्मा का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति जैन ने कहा,

"9 सितम्बर 2005 को जीवित बेटी कॉपार्सनर बन जाती है, चाहे पिता जीवित हों या नहीं।"

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पीठ ने आगे टिप्पणी की,

"अगर मकान स्व-अर्जित भी था, तब भी धारा 8 उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटी सहित सभी उत्तराधिकारी बराबर हिस्सेदार होते हैं। ट्रायल कोर्ट का निष्कर्ष कि वादी का कोई हिस्सा नहीं था, पूरी तरह से गलत है।"

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस शुरुआती स्तर पर सिर्फ यह देखना जरूरी है कि क्या वाद में कोई कारण-कार्रवाई (cause of action) है। चूंकि धोखे से डीड कराने का आरोप लगाया गया है, इसे बिना मुकदमे की सुनवाई के खारिज नहीं किया जा सकता।

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निर्णय

अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने हापुड़ की ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मूल वाद को सुनवाई के लिए बहाल कर दिया। न्यायमूर्ति जैन ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह मामले की जल्द और विधि अनुसार सुनवाई करे।

जज ने दृढ़ शब्दों में कहा,

"ट्रायल कोर्ट का निर्णय पूर्णतः विकृत है। वादी को गिफ्ट डीड को चुनौती देने का अधिकार शुरुआत में ही नकारा नहीं जा सकता।"

इसके साथ ही दीपिका रानी की अपने पिता की संपत्ति पर लड़ाई फिर से पटरी पर लौट आई है। अब यह मामला पूरी सुनवाई से गुजरेगा, न कि शुरुआती दौर में ही खारिज हो जाएगा।

केस का शीर्षक: कुमारी दीपिका रानी बनाम विनय बंसल

केस संख्या: प्रथम अपील संख्या 148/2017

निर्णय की तिथि: 19 सितंबर 2025

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