11 सितम्बर 2025 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जस्टिस अरिंदम मुखर्जी की पीठ ने बीवी एंटरप्राइजेज बनाम एल एंड टी फाइनेंस लिमिटेड मामले में एक अहम आदेश सुनाया। विवाद एक व्यापारिक ऋण समझौते से जुड़ा था, जहां ऋणदाता द्वारा एकतरफा मध्यस्थ की नियुक्ति मुख्य मुद्दा बना।
पृष्ठभूमि
ऋणकर्ताओं, बीवी एंटरप्राइजेज और अन्य ने 22 जून 2024 को एक एसएमई बिजनेस लोन एग्रीमेंट के तहत ऋण लिया था। समझौते में एक मध्यस्थता क्लॉज था, जो ऋणदाता (एल एंड टी फाइनेंस) को अकेले ही मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार देता था।
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इसी क्लॉज के तहत ऋणदाता ने श्री श्याम बिहारी शर्मा को मध्यस्थ नियुक्त किया। उक्त मध्यस्थ ने मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 17 के अंतर्गत फैसला देते हुए "जजमेंट से पहले कुर्की" का आदेश पारित किया। इसे चुनौती देते हुए ऋणकर्ताओं ने धारा 37 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उनका मुख्य तर्क था कि चूंकि मध्यस्थ की नियुक्ति केवल ऋणदाता ने की है, यह प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों टीआरएफ लि. बनाम एनर्जो (2017) और पर्किन्स ईस्टमैन बनाम एचएससीसी (2020) के अनुसार अमान्य है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
जस्टिस मुखर्जी ने ऋणकर्ताओं की दलील से सहमति जताई। उन्होंने कहा,
"प्रतिवादी कंपनी के किसी भी प्रधान अधिकारी द्वारा नियुक्त मध्यस्थ पक्षकार से सीधे जुड़े होने के कारण अयोग्य हो जाते हैं। इस प्रकार मध्यस्थ की नियुक्ति शून्य है।"
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एक बार जब नियुक्ति शून्य ठहर गई, तो उसके बाद की सारी कार्यवाही और आदेश भी अमान्य हो गए। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मध्यस्थता समझौता स्वयं वैध बना रहेगा, केवल नियुक्ति की प्रक्रिया ही अवैध थी।
दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि अब अदालत ही एक नए मध्यस्थ की नियुक्ति करे।
नए मध्यस्थ की नियुक्ति
अदालत ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 14 और 15 के तहत पुराने मध्यस्थ का कार्यभार समाप्त कर दिया और श्री राज रत्न सेन (बैरेस्टर व अधिवक्ता, बार लाइब्रेरी क्लब) को नया एकल मध्यस्थ नियुक्त किया।
नए मध्यस्थ का पारिश्रमिक ₹2,00,000 तय किया गया, जिसे दोनों पक्ष बराबर-बराबर वहन करेंगे। कार्यवाही दे नोवो (शुरू से) होगी और स्थान कोलकाता रहेगा।
अंतरिम संरक्षण और सुरक्षा आदेश
हालांकि पुराना आदेश निरस्त कर दिया गया, लेकिन अदालत ने ऋणदाता की मांग पर अंतरिम संरक्षण दिया। एल एंड टी फाइनेंस ने दावा किया कि ऋणकर्ताओं पर 10 लाख रुपये से अधिक की बकाया राशि है।
जस्टिस मुखर्जी ने कहा,
"मैं निर्देश देता हूँ कि अपीलकर्ता अपने बैंक खातों का संचालन इस प्रकार न करें कि उसमें न्यूनतम ₹2,50,000 से कम शेष बचे।"
इस प्रकार, मध्यस्थ के आदेश को अमान्य करने के बावजूद अदालत ने स्वयं ऋणदाता के हितों की रक्षा हेतु सुरक्षा आदेश पारित किया।
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निर्णय
अंततः उच्च न्यायालय ने -
- ऋणदाता द्वारा नियुक्त मध्यस्थ का कार्यभार समाप्त किया।
- श्री राज रत्न सेन को नया मध्यस्थ नियुक्त किया।
- मध्यस्थता कार्यवाही को फिर से शुरू करने का आदेश दिया।
- ऋणकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे अपने बैंक खातों में ₹2.5 लाख न्यूनतम शेष बनाए रखें।
अपील को इस प्रकार निपटा दिया गया।
केस का शीर्षक: बीवी एंटरप्राइजेज एवं अन्य। बनाम एल एंड टी फाइनेंस लिमिटेड
केस नंबर: APOT 208 of 2025; IA No. GA 1 of 2025