एर्नाकुलम, 17 सितम्बर: केरल हाई कोर्ट ने बुधवार को एक अहम आदेश में दो भाइयों को अग्रिम जमानत दे दी, जिन पर दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत गंभीर आरोप लगे थे। जस्टिस गोपीनाथ पी. ने निष्कर्ष निकाला कि प्रस्तुत तथ्यों से न तो दुष्कर्म का मामला बनता है और न ही एससी/एसटी एक्ट की कठोर धाराएं लागू होती हैं।
पृष्ठभूमि
यह मामला मराडू पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत से शुरू हुआ। महिला ने आरोप लगाया कि पहले आरोपी, 29 वर्षीय राहुल एम.आर., ने शादी का झांसा देकर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए, जो बाद में टूट गया। उसके बड़े भाई, 37 वर्षीय रेंजीत एम.आर., पर उसे राहुल से दूर रहने की धमकी देने का आरोप है।
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अभियोजन ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n) (बार-बार दुष्कर्म) और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v) लगाई, जिसमें अग्रिम जमानत तभी दी जा सकती है जब अदालत प्रथम दृष्टया अपराध न पाए।
अदालत के अवलोकन
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने दलील दी कि शिकायतकर्ता पहले से विवाहित थी और अपने पति से अलग रहते हुए उसने अपनी इच्छा से राहुल के साथ रहना चुना। उनका कहना था कि वर्षों तक चले सहमति वाले रिश्ते को केवल इसलिए दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता क्योंकि अंत में शादी नहीं हुई।
जस्टिस गोपीनाथ ने इस तर्क से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला दिया। अदालत ने कहा, “जब दो वयस्कों के बीच रिश्ता वर्षों तक चलता है और बाद में टूटता है, तो इसे अपने आप झूठे वादे पर दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।”
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बड़े भाई के खिलाफ आरोपों को लेकर अदालत ने सबूत कमजोर पाया। फोन रिकॉर्ड में दो लंबी कॉल दिखीं, लेकिन जज ने नोट किया कि ये उसी समय की हैं जब शिकायतकर्ता और राहुल के बीच संबंध सामान्य थे। आदेश में कहा गया, “यह पूरी तरह संभव है कि पहला आरोपी दूसरे आरोपी का फोन इस्तेमाल कर रहा हो।”
जज ने आगे स्पष्ट किया कि एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v) तभी लागू होती है जब कम से कम दस साल की सजा वाले अपराध का प्रमाण हो। दुष्कर्म या आपराधिक धमकी का ठोस मामला न होने पर यह धारा लागू नहीं हो सकती।
फैसला
निचली अदालत द्वारा जमानत खारिज करने के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस गोपीनाथ ने निर्देश दिया कि गिरफ्तारी होने पर दोनों भाइयों को अग्रिम जमानत दी जाए। प्रत्येक को ₹50,000 का बांड दो जमानतदारों के साथ देना होगा, तय तारीखों पर जांच अधिकारियों के सामने पेश होना होगा और शिकायतकर्ता से किसी भी तरह का संपर्क या प्रभाव डालने से बचना होगा। आदेश में चेतावनी दी गई है कि किसी भी शर्त का उल्लंघन होने पर जमानत रद्द की जा सकती है।
जज ने यह भी स्पष्ट किया कि ये निष्कर्ष केवल जमानत पर निर्णय के लिए हैं, दोष सिद्ध या निर्दोष साबित करने के लिए नहीं।
मामला: राहुल एम.आर. एवं रंजीत एम.आर. बनाम केरल राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: आपराधिक अपील संख्या 1685 एवं 1690, वर्ष 2025
निर्णय की तिथि: 17 सितंबर 2025