केरल हाई कोर्ट ने बुधवार (17 सितंबर 2025) को एक 32 वर्षीय व्यक्ति को जमानत दे दी, जिस पर तलाकशुदा महिला का शादी का वादा कर यौन शोषण करने का आरोप है। न्यायमूर्ति बेक्कु कुरियन थॉमस ने जमानत याचिका पर सुनवाई की और उसी दिन आदेश सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह मामला तिरुवनंतपुरम के मंगळापुरम पुलिस स्टेशन में दर्ज अपराध संख्या 1048/2025 से संबंधित है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी विष्णु ने 2023 में अपने जिम में शिकायतकर्ता महिला से मुलाकात की और जान-पहचान धीरे-धीरे गहरी हो गई।
शिकायत में कहा गया है कि संबंध विवाह के आश्वासन पर शारीरिक रूप से घनिष्ठ हो गया। महिला का आरोप है कि आरोपी ने उसे कनाडा ले जाने तक की बात कही थी। लेकिन अगस्त 2025 में उसने दूरी बनानी शुरू कर दी और आखिरकार अपने फोन पर उसे ब्लॉक कर दिया। एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 की धाराएँ 69, 74 और 115(2) लगाई गई हैं, जो यौन अपराधों और संबंधित कदाचार से जुड़ी हैं। विष्णु को 31 अगस्त 2025 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में है।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पहले ही दो सप्ताह से अधिक समय से हिरासत में है और उसे जमानत मिलनी चाहिए। वहीं लोक अभियोजक ने आरोपों की गंभीरता का हवाला देते हुए जमानत का विरोध किया।
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लेकिन अदालत ने महिला के बयान पर विशेष महत्व दिया। न्यायमूर्ति थॉमस ने नोट किया कि शिकायतकर्ता तलाकशुदा है और यह संबंध लगभग दो साल तक चला। उन्होंने कहा,
"बयान पढ़ने से prima facie यह स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच सहमति से संबंध था।"
अदालत ने हाल के सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें प्रशांत बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य (2024) और अमोल भगवान नेहुल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) शामिल हैं। इन फैसलों में कहा गया था कि यदि सहमति से बने संबंध बाद में बिगड़ जाएँ तो इसे स्वतः बलात्कार या शोषण नहीं माना जा सकता।
पीठ ने कहा,
"सिर्फ इसलिए कि किसी जोड़े का संबंध बिगड़ गया और शादी नहीं हो सकी, इसका यह अर्थ नहीं है कि बलात्कार का अपराध हुआ," आदेश में दर्ज है।
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निर्णय
इन मिसालों पर भरोसा करते हुए न्यायमूर्ति थॉमस ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी की आगे की हिरासत इस चरण में आवश्यक नहीं है। अदालत ने कठोर शर्तों के साथ जमानत दी, जिसमें 50,000 रुपये का निजी बांड और दो जमानतदार शामिल हैं। विष्णु को गवाहों को डराने, सबूतों से छेड़छाड़ करने या समान अपराध करने से मना किया गया है। इसके अलावा वह बिना अदालत की अनुमति के भारत से बाहर नहीं जा सकेगा।
इस प्रकार केरल हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि जबकि जांच जारी रहेगी, आरोपी की लंबी कैद परिस्थितियों में उचित नहीं है। आदेश के अंत में चेतावनी दी गई कि यदि किसी भी शर्त का उल्लंघन होता है, तो निचली अदालत उचित कार्रवाई कर सकती है, जिसमें जमानत रद्द करना भी शामिल है।
केस का शीर्षक: विष्णु बनाम केरल राज्य
केस संख्या: ज़मानत आवेदन संख्या 11668 (2025)