दिल्ली उच्च न्यायालय ने समीर वानखेड़े के खिलाफ केंद्र की पुनर्विचार याचिका खारिज की, पदोन्नति मामले में तथ्य छिपाने के लिए सरकार की आलोचना की

By Shivam Y. • October 21, 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय ने समीर वानखेड़े के खिलाफ केंद्र की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी, तथ्य छिपाने के लिए सरकार की खिंचाई की, पूर्व के पदोन्नति आदेश को बरकरार रखा और 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया। - भारत संघ एवं अन्य बनाम समीर ज्ञानदेव वानखेड़े

केंद्र सरकार को एक बड़ा झटका देते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 अक्टूबर 2025 को भारत संघ व अन्य की वह समीक्षा याचिका खारिज कर दी जिसमें आईआरएस अधिकारी समीर दयानदेव वानखेड़े के पदोन्नति आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति मधु जैन की खंडपीठ ने केंद्र सरकार के आचरण पर कड़ी नाराज़गी जताई और तथ्यों को छिपाने के लिए फटकार लगाई। अदालत ने सरकार पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया जिसे दिल्ली हाईकोर्ट बार क्लर्क्स एसोसिएशन के पास चार सप्ताह में जमा करना होगा।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद 18 मार्च 2024 को हुई विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) की बैठक से जुड़ा है, जिसमें वानखेड़े की अतिरिक्त आयुक्त पद पर पदोन्नति पर विचार किया गया था। उस समय उनके खिलाफ कोई लंबित मामला नहीं था, फिर भी उनकी पदोन्नति की सिफारिश को “सील कवर (sealed cover)” में रख दिया गया - जिसे बाद में वानखेड़े ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में चुनौती दी।

दिसंबर 2024 में अधिकरण ने वानखेड़े के पक्ष में फैसला सुनाया और केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सील कवर खोला जाए और यदि यूपीएससी ने उनका नाम अनुशंसित किया है तो उन्हें 1 जनवरी 2021 से पदोन्नति दी जाए।

सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया और इसके बजाय दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अगस्त 2025 में अधिकरण के फैसले को बरकरार रखते हुए चार सप्ताह के भीतर आदेश का पालन करने को कहा।

लेकिन सरकार ने अनुपालन करने के बजाय समीक्षा याचिका दायर कर दी, यह दलील देते हुए कि 18 अगस्त 2025 को वानखेड़े के खिलाफ जारी चार्ज मेमो (charge memorandum) के कारण उनकी पदोन्नति को फिर से सील कवर में रखा जा सकता है।

अदालत के अवलोकन

पीठ ने सरकार की दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि चार्ज मेमो अदालत के निर्णय सुरक्षित किए जाने के बाद जारी किया गया था, इसलिए यह मामला दोबारा खोलने का वैध आधार नहीं बन सकता।

न्यायमूर्ति चावला ने कहा, "यह हमारे समक्ष कोई नया कारण नहीं था, इसलिए हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।"

अदालत ने सरकार के व्यवहार पर सख्त नाराज़गी जताई कि उसने यह तथ्य छिपाया कि 27 अगस्त 2025 को अधिकरण पहले ही वानखेड़े के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर प्रतिबंध लगा चुका था।
पीठ ने कहा,

"हम समीक्षा याचिकाकर्ताओं के इस आचरण की कड़ी निंदा करते हैं कि उन्होंने अदालत को यह तथ्य नहीं बताया कि अधिकरण ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका था।"

अदालत ने यह भी कहा कि सरकार, एक राज्य के रूप में, "पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से सभी प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने की अपेक्षा की जाती है।"

निर्णय

अंत में, अदालत ने कहा कि पहले दिए गए निर्णय को बदलने या वापस लेने का कोई वैध आधार नहीं है और समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही, सरकार को ₹20,000 की लागत चार सप्ताह में जमा करने का आदेश दिया गया।

आदेश में कहा गया,

"प्रस्तुत कारण हमारे पूर्ववर्ती निर्णय को वापस लेने या संशोधित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।" अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार को लगता है कि कोई नया कारण है जिससे पदोन्नति रोकी जा सकती है, तो उसे एक अलग कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए, न कि समीक्षा याचिका का दुरुपयोग करना चाहिए।

इस फैसले के साथ, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि प्रशासनिक देरी या “सील कवर” की नीति का उपयोग बिना वैध कारण के पदोन्नति रोकने के लिए नहीं किया जा सकता विशेष रूप से तब जब अधिकरण और अदालत पहले ही इस पर निर्णय दे चुके हों।

Case Title: Union of India and Others vs Sameer Dnyandev Wankhede

Case Number: W.P. (C) 10271/2025

Petitioner's Counsel:

Mr. Ashish K. Dixit, Central Government Standing Counsel (CGSC)
with Mr. Adhiraj Singh, Government Pleader,
Mr. Umar Hashmi, Mr. Mayank Upadhyay,
Mr. Harshit Chitransh, Ms. Iqra Sheikh, Advocates.

Respondent's Counsel:

Mr. T. Singhdev, Mr. Jatin Parashar, Mr. Rohit Bhagat,
Ms. Yamini Singh, Mr. Abhijit Chakravarty,
Ms. Ramanpreet Kaur, Mr. Tanishq Shrivastava,
Mr. Sourabh Kumar, Mr. Vedant Sood, and Mr. Bhanu Gulati, Advocates.

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