17 अक्तूबर 2025 को सुनाए गए एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण प्रतिषेध अधिनियम, 2021 (“यूपी धर्मांतरण कानून”) के तहत दर्ज कई एफआईआर को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि शिकायतें ऐसे लोगों द्वारा दर्ज कराई गई थीं जो कानून के तहत ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं थे।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा-“ऐसे मामलों को जारी रखना जिनकी नींव ही दोषपूर्ण हो, न्याय के उद्देश्य के प्रतिकूल होगा।”
यह फैसला राजेंद्र बिहारी लाल एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से जुड़ी याचिकाओं के समूह पर आया, जिनमें फतेहपुर ज़िले में दर्ज कई धर्मांतरण के मामलों को चुनौती दी गई थी।
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पृष्ठभूमि
मामला 2022 से 2023 के बीच दर्ज छह एफआईआर से जुड़ा था, जिनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) और यूपी धर्मांतरण अधिनियम के तहत गंभीर धाराएँ लगाई गई थीं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ये एफआईआर राजनीतिक प्रेरित हैं और इन्हें ऐसे लोगों ने दर्ज कराया जो धारा 4 के अर्थ में “पीड़ित व्यक्ति” नहीं हैं।
धारा 4 के अनुसार, केवल वही व्यक्ति शिकायत कर सकता है जो धर्मांतरण का शिकार हुआ हो या उसके परिवार/रिश्तेदार। इन मामलों में एफआईआर ऐसे लोगों ने दर्ज कराई जो घटना से असंबंधित थे और “सुन-सुनाई बातों” पर कार्रवाई कर रहे थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले इन एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने यह जांच की कि शिकायतकर्ता कानूनी रूप से सक्षम थे या नहीं, क्या एक ही घटना पर कई FIR दर्ज हो सकती हैं, और क्या अनुच्छेद 32 के तहत सीधे आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा-“एफआईआर संख्या 224/2022 एक असाध्य दोष से ग्रस्त है-यह ऐसे व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई जो कानूनन सक्षम नहीं था।” उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की कार्रवाई को जारी रखना “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता का सीधा उल्लंघन” होगा।
कोर्ट ने स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम भजनलाल और नीहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि न्यायालय आपराधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है, भले ही जांच चल रही हो।
पीठ ने कहा-“हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आपराधिक कानून को उत्पीड़न या राजनीतिक प्रतिशोध के हथियार के रूप में इस्तेमाल न किया जाए।”
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि एक ही आरोपों पर कई एफआईआर दर्ज करना ‘समानता की कसौटी’ का उल्लंघन है और यह अस्वीकार्य है। न्यायालय ने टी.टी. एंटोनी बनाम केरल राज्य के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि “एक ही घटना पर बार-बार एफआईआर दर्ज करना वैधानिक अधिकार का दुरुपयोग है।”
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फैसला
157 पन्नों के विस्तृत फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष दिया-
- एफआईआर संख्या 224/2022, थाना कोतवाली फतेहपुर, रद्द की गई, क्योंकि इसे अयोग्य व्यक्ति ने दर्ज कराया था।
- एफआईआर संख्या 55/2023 और 60/2023 को टी.टी. एंटोनी के सिद्धांत के उल्लंघन के आधार पर रद्द किया गया।
- एफआईआर संख्या 224/2022 और 47/2023 को अनुच्छेद 32 के तहत पूरी तरह रद्द कर दिया गया और उससे जुड़ी सभी कार्यवाहियाँ समाप्त कर दी गईं।
- एफआईआर संख्या 54/2023 को भी निष्पक्ष जांच न होने के कारण रद्द कर दिया गया।
- एफआईआर संख्या 538/2023 में कोर्ट ने पाया कि धर्मांतरण अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बनता, लेकिन IPC की धाराओं (307, 386, 504) की जांच जारी रहेगी।
फैसले के अंत में पीठ ने कहा-“आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की असाधारण शक्ति हल्के में नहीं बरती जानी चाहिए, लेकिन जब स्पष्ट अन्याय सामने हो, तो हस्तक्षेप करना न्यायालय का कर्तव्य बन जाता है।”
अदालत ने अपीलों को स्वीकार करते हुए बिना किसी लागत आदेश के निपटाया, जबकि एफआईआर संख्या 538/2023 से जुड़ा मामला अलग सुनवाई के लिए डिटैग कर दिया गया।
Case: Rajendra Bihari Lal & Another v. State of Uttar Pradesh & Others (2025)
Citation: 2025 INSC 1249
Date of Judgment: 17 October 2025