दिल्ली हाई कोर्ट ने बीएसएफ को दिव्यांग पुत्र के लिए एएसआई को स्थानांतरित करने का आदेश दिया, 'स्टैटिक पोस्टिंग' तर्क खारिज

By Vivek G. • December 7, 2025

शंभू नाथ राय बनाम भारत संघ और अन्य, दिल्ली हाई कोर्ट ने बीएसएफ को दिव्यांग पुत्र के लिए एएसआई को स्थानांतरित करने का आदेश दिया, “स्टैटिक पोस्टिंग” तर्क खारिज किया और दिव्यांग अधिकारों पर जोर दिया।

मंगलवार को हुई सुनवाई उम्मीद से कहीं ज़्यादा लंबी चली, और अंत में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसा आदेश सुनाया जिसने अदालत कक्ष का माहौल पलट दिया। एक बीएसएफ अधिकारी, जो अपने दिव्यांग पुत्र के इलाज के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधाओं वाले शहर में पोस्टिंग मांग रहे थे, उनके पक्ष में अदालत ने कड़ा और संवेदनशील निर्णय दिया। न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की पीठ केंद्र सरकार की दलीलों से ज़्यादा प्रभावित नहीं दिखी। उसी दिन अपलोड हुए इस आदेश में साफ संदेश था-दिव्यांग व्यक्तियों के हितों को प्रक्रियागत बहानों से कमजोर नहीं किया जा सकता।

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पृष्ठभूमि

सहायक उप-निरीक्षक (ASI) शंभू नाथ राय को बीएसएफ की 171वीं बटालियन, सिलचर में पोस्ट किया गया-दिल्ली में रह रहे उनके पुत्र से 2100 किलोमीटर से अधिक दूरी पर। उनके पुत्र को 50% स्थायी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है, जिसके कारण निरंतर देखभाल और सुपर-स्पेशियलिटी अस्पतालों की निकटता अनिवार्य है। इससे पहले अदालत ने उन्हें स्थानांतरण के लिए समय दिया था और बीएसएफ से कहा था कि यदि दिल्ली संभव न हो, तो कोलकाता या बेंगलुरु पर विचार करे।

लेकिन अप्रैल 2025 में बीएसएफ ने अधिकारी का अनुरोध ठुकरा दिया। उन्होंने “कूलिंग-ऑफ” नियमों, देखभालकर्ता छूट के कथित अत्यधिक उपयोग और यहां तक कि पुत्र के वेतन जैसी बातें भी कारण बताईं। यही अस्वीकृति आदेश अब याचिका का मुख्य विषय था।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान अदालत का रुख शांत लेकिन दृढ़ था। एक मौके पर न्यायमूर्ति हरि शंकर ने पूछा कि बीएसएफ क्यों अधिकारी की पिछली पोस्टिंग हिस्ट्री को पुत्र की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति से ज़्यादा अहम मान रहा है।

पीठ ने टिप्पणी की, “दिव्यांगता प्रमाणपत्र स्पष्ट रूप से एक प्रगतिशील स्थिति दर्शाता है, जिसे निरंतर देखभाल और सुपर-स्पेशियलिटी उपचार की आवश्यकता है।”

अदालत ने बीएसएफ की दलीलों को एक–एक करके खारिज किया:

  • “आठ वर्ष कूलिंग-ऑफ” का कोई कानूनी आधार नहीं
    जजों ने कहा कि 2000 की ट्रांसफर नियमावली में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 2024 की नई गाइडलाइंस पहले की पोस्टिंग्स को सही ठहराने का आधार नहीं बन सकतीं।
  • हज़ारीबाग को “स्टैटिक पोस्टिंग” साबित नहीं किया गया
    चूंकि कोई दस्तावेज़ यह नहीं दिखाता कि हज़ारीबाग को स्टैटिक फॉर्मेशन घोषित किया गया था, इसलिए बीएसएफ का पूरा तर्क “अपने ही बोझ से गिर गया।”
  • देखभालकर्ता संरक्षण का उदारतापूर्वक अर्थ लगाया जाना चाहिए
    अदालत ने याद दिलाया कि 2018 का गृह मंत्रालय का ओएम दिव्यांग व्यक्तियों की रक्षा के लिए बनाया गया था, न कि यह तय करने के लिए कि कितनी बार छूट दी जाए। ट्रांसफर तभी रोका जा सकता है जब वास्तविक प्रशासनिक बाधाएं हों—और यहां ऐसा कुछ दिखाया नहीं गया। “यह ओएम कोई दया की रियायत नहीं है। यह गरिमा और समानता पर आधारित वैधानिक अधिकारों की सुरक्षा है,” अदालत ने कहा।
  • पुत्र का वेतन असंगत और अप्रासंगिक
    बीएसएफ ने तर्क दिया था कि पुत्र 95,000 रुपये मासिक वेतन पाता है। अदालत ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उसकी उपलब्धियों को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
    “वह सराहना के योग्य है, दंडित करने के नहीं,” पीठ ने कहा।

अदालत ने हाल के सुप्रीम कोर्ट के उन सिद्धांतों का भी उल्लेख किया जो समावेशन, उचित सुविधा (Reasonable Accommodation) और दिव्यांग अधिकारों की सार्थक समानता पर जोर देते हैं।

निर्णय

अंतिम तौर पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बीएसएफ का अस्वीकृति आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि अधिकारी को “फौरन दिल्ली स्थानांतरित किया जाए, यदि संभव हो।” यदि वास्तविक प्रशासनिक बाधाएं दिल्ली पोस्टिंग को असंभव बनाती हैं, तो बीएसएफ को तर्कसंगत आदेश जारी करना होगा और उस स्थिति में उन्हें कोलकाता या बेंगलुरु जैसे वैकल्पिक शहरों में पोस्ट करना होगा, जहाँ आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अदालत ने बीएसएफ को तीन सप्ताह की समय-सीमा दी।

इसके साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगता से संबंधित अधिकारों को प्रशासनिक कठोरता के नाम पर पीछे नहीं धकेला जा सकता।

Case Title: Shambhu Nath Rai vs. Union of India & Others

Case Number: W.P.(C) 7318/2025

Case Type: Writ Petition (Service/Transfer – BSF Posting & Disability Rights)

Decision Date: 18 November 2025

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