भारत में समान-लिंग संबंधों की कानूनी परिभाषा पर बड़ा असर डाल सकने वाले एक मामले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने यह जांचने पर सहमति जताई है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत “क्रूरता” का अपराध समान-लिंग साझेदारों पर लागू हो सकता है या नहीं। यह मामला न्यायमूर्ति संजीव नरूला के समक्ष आया, जिन्होंने दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करते हुए सिम्मी पाटवा की याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें उन्होंने अपनी पूर्व साथी द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है।
पृष्ठभूमि
पाटवा, जो स्वयं को जैविक रूप से महिला बताती हैं और जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित हैं, एक अन्य महिला के साथ रिश्ते में थीं। याचिका के अनुसार, दोनों ने एक प्रतीकात्मक विवाह समारोह किया और साथ रहने लगीं। हालांकि, उनका रिश्ता जल्द ही बिगड़ गया।
पाटवा का आरोप है कि उनकी साथी ने उन्हें मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न का शिकार बनाया, उन्हें जेंडर ट्रांजिशन सर्जरी करवाने के लिए ब्लैकमेल किया, और बाद में आपराधिक मामलों की धमकी दी। पाटवा का कहना है कि जब उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह शून्यता (nullity) की याचिका दाखिल की, तो उनकी पूर्व साथी ने धारा 498ए (क्रूरता), 406 (आपराधिक न्यासभंग), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (समान आशय) के तहत झूठी एफआईआर दर्ज करा दी।
याचिका में कहा गया है कि यह एफआईआर कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है, क्योंकि दोनों पक्ष महिलाएं हैं, और इस प्रकार यह रिश्ता न तो IPC के तहत “विवाह” कहलाता है और न ही हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्य है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नरूला ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया प्रश्न फौजदारी कानून के एक अनसुलझे और महत्वपूर्ण क्षेत्र से जुड़ा है। “क्या धारा 498ए, जो एक महिला को उसके पति या ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता से बचाने के लिए बनाई गई है, समान-लिंग संबंधों पर लागू हो सकती है - यह गहन विचार का विषय है,” न्यायालय ने कहा।
पाटवा के वकील ने दलील दी कि धारा 498ए की मूल संरचना एक विषमलैंगिक विवाह पर आधारित है, जिसमें शिकायतकर्ता पत्नी और आरोपी पति होना आवश्यक है। इसलिए, समान-लिंग संबंध में किसी महिला पर यह धारा लगाना कानून का गलत उपयोग है।
याचिका में एम्स (AIIMS) द्वारा जारी एक चिकित्सा प्रमाणपत्र भी पेश किया गया, जिसमें यह पुष्टि की गई है कि पाटवा आनुवंशिक रूप से महिला हैं। इस आधार पर उन्होंने तर्क दिया कि पति-पत्नी के बीच बनाए गए प्रावधान को दो महिलाओं पर लागू करना गलत है। साथ ही यह भी कहा गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (PWDVA) भी समान-लिंग साझेदारी पर लागू नहीं होता, क्योंकि भारतीय कानून अब तक ऐसे संबंधों को विवाह के रूप में मान्यता नहीं देता।
निर्णय
संक्षिप्त सुनवाई के बाद न्यायालय ने दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करते हुए उनसे याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि सभी पक्षों को अपना जवाब अगली सुनवाई से पहले दाखिल करना होगा, जो 13 नवंबर को निर्धारित है।
यह मामला भारत में समान-लिंग साझेदारी के संदर्भ में वैवाहिक और घरेलू उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की व्याख्या को प्रभावित कर सकता है - एक ऐसा प्रश्न जो नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ (2018) के बाद भी कानूनी रूप से अस्पष्ट बना हुआ है।
फिलहाल, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा इस मुद्दे पर विचार करने के फैसले ने कानूनी और सामाजिक दोनों हलकों में ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यह पहली बार हो सकता है जब अदालत समान-लिंग संबंधों में आपराधिक दायित्व की सीमाओं को परिभाषित करेगी।
Case Title: Simmi Patwa v. GNCT of Delhi & Anr
Petitioner: Simmi Patwa - identifies as biologically female, suffering from gender dysphoria.
Respondent: Government of NCT of Delhi & complainant (former female partner).
Date of Order: October 2025 (Next hearing on November 13, 2025)