कर्नाटक हाई कोर्ट, धारवाड़ बेंच ने 47 वर्षीय विधवा की दया नियुक्ति (compassionate appointment) की अर्जी को उम्र के आधार पर खारिज करने के फैसले को पलटते हुए नॉर्थ वेस्टर्न कर्नाटक रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (NWKRTC) को उसका आवेदन दोबारा विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने 14 अक्टूबर 2025 को सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में नियमों का नहीं बल्कि “मानवीय दृष्टिकोण” का पालन होना चाहिए।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सरोजा पत्नी गणेशराव एन. कोंडई के पति, जो NWKRTC में ड्राइवर-कम-कंडक्टर के पद पर कार्यरत थे, का 27 सितंबर 2023 को आकस्मिक निधन हो गया। पति की मृत्यु के तुरंत बाद सरोजा ने परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए दया नियुक्ति के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया।
हालांकि, निगम ने उनके आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे उस समय 43 वर्ष की अधिकतम निर्धारित आयु सीमा पार कर चुकी थीं। यह अस्वीकृति दो अलग-अलग पत्रों - 17 जनवरी 2025 और 10 मई 2025 - के ज़रिए दी गई, जिनमें बताया गया कि मृत्यु के समय उनकी उम्र 47 वर्ष, 2 महीने और 24 दिन थी।
पति की मृत्यु के बाद परिवार पर गहरा आर्थिक संकट आने की बात कहते हुए सरोजा ने इन आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी, यह दलील देते हुए कि दया नियुक्ति योजना का उद्देश्य नियमों की कठोर व्याख्या नहीं, बल्कि संकटग्रस्त परिवारों की सहायता करना है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि दया नियुक्ति का मकसद मृत कर्मचारी के परिवार की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करना है, न कि इसे वैकल्पिक भर्ती के रूप में लेना।
उन्होंने टिप्पणी की कि “यदि आयु सीमा को यांत्रिक रूप से लागू किया जाएगा, तो यह योजना अपनी आत्मा ही खो देगी।”
अदालत ने पहले दिए गए एक समान मामले (W.P. No. 102208 of 2025) का उल्लेख किया, जिसमें उम्र सीमा पार करने के आधार पर आवेदन खारिज किया गया था। उस पीठ ने कहा था,
“आयु सीमा का सख्त पालन केवल अन्याय को जन्म देगा और राज्य द्वारा अपेक्षित सामाजिक न्याय की भावना को ठेस पहुँचाएगा।”
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि वे इस दृष्टिकोण से “पूर्ण सहमति” रखते हैं और इसे आगे स्पष्ट करते हैं।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के Canara Bank बनाम अजित कुमार जी.के. (2025 SCC OnLine SC 290) फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यदि परिवार वास्तव में आर्थिक संकट में है, तो केवल आयु के आधार पर दया नियुक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता।
बेंच ने कहा,
“सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि कोई भी पात्र आश्रित केवल आयु के कारण दरवाज़े पर रोक नहीं दिया जाना चाहिए। दया दिखाना गणना से अधिक महत्वपूर्ण है।”
न्यायमूर्ति ने यह भी पाया कि NWKRTC ने आवेदन खारिज करने से पहले परिवार की आर्थिक स्थिति की कोई जांच नहीं की, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में यह आवश्यक बताया है।
अदालत ने कहा कि दया नियुक्ति का निर्णय वास्तविक मानवीय स्थिति को देखकर होना चाहिए, न कि सिर्फ कागज़ी नियमों के आधार पर।
निर्णय
अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, 17 जनवरी 2025 और 10 मई 2025 की दोनों अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया और NWKRTC को आदेश दिया कि वह सरोजा के आवेदन पर दोबारा विचार करे। यह प्रक्रिया आदेश की प्रति मिलने के आठ सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने अपने आदेश में कहा -
“निगम को अब उसके आवेदन को संख्याओं की दृष्टि से नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा की दृष्टि से देखना चाहिए।”
यह आदेश नियुक्ति का सीधा निर्देश नहीं देता, लेकिन निगम पर यह स्पष्ट दायित्व डालता है कि वह मानवता और न्याय के अनुरूप पुनर्विचार करे।
इस फैसले से अदालत ने फिर यह संदेश दिया कि नियमों और करुणा के बीच संतुलन बनाए रखना ही प्रशासनिक न्याय की असली परीक्षा है - विशेषकर तब, जब किसी परिवार की रोज़ी-रोटी अचानक छिन जाए।
Case Title: Saroja Kondai AND Managing Director & Others
Case Type & Number: Writ Petition No. 106296 of 2025
Date of Decision: 14 October 2025