एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल हाईकोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के पक्ष में निर्णय देते हुए उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें बीमा कंपनी को कैंसर बीमा लाभ देने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस अनिल के. नरेन्द्रन और जस्टिस मुरली कृष्ण एस. की खंडपीठ ने माना कि कैंसर का निदान पॉलिसी की 180 दिन की प्रतीक्षा अवधि के भीतर हुआ था, इसलिए क्लेम अमान्य है।
पृष्ठभूमि
यह मामला अलाप्पुझा की 44 वर्षीय हरीप्रीथा टी से जुड़ा है, जिन्होंने 16 मार्च 2021 को ₹10 लाख की एलआईसी कैंसर कवर पॉलिसी खरीदी थी। अगस्त के अंत में उन्हें तबीयत खराब हुई और उन्हें लाइफ लाइन हॉस्पिटल, अडूर में भर्ती कराया गया, जहाँ जांच में एंडोमेट्रियल मॉलिग्नेंसी का संकेत मिला। बाद में 9 सितंबर 2021 को उन्होंने एर्नाकुलम के लेक शोर हॉस्पिटल में सर्जरी कराई और 28 सितंबर 2021 को बायोप्सी रिपोर्ट में “कार्सिनोमा एंडोमेट्रियोसिस ग्रेड-II” की पुष्टि हुई।
हरीप्रीथा ने यह मानते हुए बीमा दावा दायर किया कि वह इसके लिए पात्र हैं। लेकिन LIC ने यह कहते हुए क्लेम अस्वीकार कर दिया कि बीमारी का पहला निदान 25 अगस्त 2021 को हुआ था - यानी पॉलिसी की शुरुआत के 162 दिन बाद - जो क्लॉज 8(G) में बताई गई 180 दिन की प्रतीक्षा अवधि के भीतर आता है।
उन्होंने पहले LIC के शिकायत निवारण कार्यालय और बाद में बीमा लोकपाल से गुहार लगाई, पर दोनों ने एलआईसी का रुख सही माना। इसके बाद उन्होंने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे अगस्त 2024 में सिंगल जज ने स्वीकार कर LIC को भुगतान का निर्देश दिया। एलआईसी ने इसके खिलाफ अपील दायर की।
न्यायालय के अवलोकन
अपील (W.A. No. 1670 of 2024) की सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने चिकित्सा रिपोर्टों और निदान की समयरेखा की गहन जांच की। जस्टिस मुरली कृष्ण एस., जिन्होंने फैसला लिखा, ने कहा कि 25 अगस्त 2021 की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट और बाद की पैथोलॉजी व एमआरआई रिपोर्टों में पहले ही कैंसर के संकेत थे, बायोप्सी की पुष्टि उससे बाद में हुई।
पीठ ने टिप्पणी की-
“28.09.2021 की पैथोलॉजी रिपोर्ट केवल पहले से किए गए निदान की पुष्टि है। अतः कैंसर का निदान 180 दिन की प्रतीक्षा अवधि के भीतर माना जाएगा।”
एलआईसी के वकील ने तर्क दिया कि पॉलिसी में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रतीक्षा अवधि के दौरान उत्पन्न किसी भी बीमारी पर क्लेम नहीं बनता। उन्होंने यह भी कहा कि बीमाधारक ने अपनी मां के स्तन कैंसर की जानकारी नहीं दी थी, जो महत्वपूर्ण तथ्य छिपाने के समान है।
हालाँकि, अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया। पीठ ने कहा-
“मां की उम्र और कैंसर के समय की स्थिति का कोई ठोस सबूत नहीं है। इसलिए इसे तथ्य छिपाने के रूप में नहीं देखा जा सकता।”
लेकिन अदालत ने पाया कि प्रतीक्षा अवधि से संबंधित एलआईसी का मुख्य तर्क सही था। “सिंगल जज ने उपलब्ध साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं किया,” पीठ ने कहा।
निर्णय
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि कैंसर का निदान प्रतीक्षा अवधि के भीतर हुआ था, इसलिए बीमाधारक बीमा लाभ की हकदार नहीं है।
खंडपीठ ने एलआईसी की अपील स्वीकार करते हुए सिंगल जज का आदेश रद्द कर दिया और मूल याचिका खारिज कर दी।
इस फैसले के साथ ही हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि बीमा शर्तों की सूक्ष्म पंक्तियाँ ही अक्सर क्लेम के भाग्य का निर्णय करती हैं।
Case Title: Life Insurance Corporation of India v. Haripreetha T & The Ombudsman
Case Number: Writ Appeal No. 1670 of 2024
Judgment Date: October 6, 2025