दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक 21 वर्षीय युवक की अपील खारिज कर दी, जिसे पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत 14 वर्षीय लड़की से बार-बार दुष्कर्म करने का दोषी ठहराया गया था। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 24 सितंबर, 2025 को आदेश सुनाते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और 10 साल के कठोर कारावास की सजा की पुष्टि की।
पृष्ठभूमि
यह मामला मार्च 2017 में दर्ज एफआईआर से शुरू हुआ था, जब पीड़िता के पिता ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। कुछ हफ्तों बाद पुलिस ने उसे उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में आरोपी रजनीश के साथ रहते हुए पाया। मेडिकल जांच में पता चला कि वह गर्भवती थी। अभियोजन पक्ष ने उसकी गवाही, स्कूल के दस्तावेज़ जिनमें जन्मतिथि जून 2003 दर्ज थी, और मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा किया।
निचली अदालत ने रजनीश को आईपीसी की धारा 363, 366, 376(2)(n) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था। उसे समानांतर सजाएँ सुनाई गईं, जिनमें सबसे बड़ी 10 साल की कैद पॉक्सो धारा के तहत थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
अपील में रजनीश ने दलील दी कि लड़की स्वेच्छा से उसके साथ गई थी, वह उससे प्रेम करती थी, और उसकी बयानों में असंगतियाँ थीं जिससे उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। उसके वकील ने स्कूल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाया, क्योंकि दाखिले के समय जन्म प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया था।
हालाँकि, न्यायमूर्ति नरूला ने इन तर्कों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा,
“एक बार जब अभियोजन पक्ष पीड़िता की नाबालिगता साबित कर देता है, तो सहमति की कोई दलील कानूनी रूप से अप्रासंगिक हो जाती है। पॉक्सो की धारा 29 के तहत सांविधिक अनुमान स्वतः लागू हो जाता है।”
अदालत ने कहा कि लड़की के विभिन्न बयानों में मामूली असंगतियाँ उसके मूल तथ्यों को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
“उसने लगातार यह पहचाना कि अपीलकर्ता वही व्यक्ति था जिसने उसे घर से ले जाकर बार-बार शारीरिक संबंध बनाए। ऐसी गवाही, गर्भावस्था साबित करने वाले मेडिकल रिकॉर्ड के साथ, भरोसा दिलाती है," पीठ ने टिप्पणी की।
न्यायाधीश ने यह भी माना कि गर्भपात के दौरान एकत्र किए गए भ्रूण के नमूने जांच में गुम हो गए, जो जांच एजेंसी की लापरवाही दर्शाता है, लेकिन इससे अभियोजन का मामला कमजोर नहीं हुआ। मेडिकल सबूतों से गर्भधारण की पुष्टि हो चुकी थी।
अपहरण के आरोप पर अदालत ने कहा कि आरोपी ने 14 वर्षीय लड़की को उसके अभिभावकों की सहमति के बिना अपने साथ ले जाया।
“उसकी इच्छुकता अप्रासंगिक है। कानून इसे अपहरण मानता है,” आदेश में कहा गया।
निर्णय
अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की और दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को पीड़िता को सात लाख रुपये मुआवज़ा तुरंत देने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति नरूला ने निष्कर्ष में कहा,
“जो किसी बच्चे की नज़र में स्नेह लग सकता है, वह क़ानून की दृष्टि में शोषण के विरुद्ध बनी सुरक्षा को कमजोर नहीं कर सकता। अपील का कोई आधार नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।"
केस का शीर्षक: रजनीश बनाम दिल्ली राज्य
निर्णय की तिथि: 24 सितंबर, 2025