मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, ग्वालियर पीठ ने उस पुलिस कांस्टेबल की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को बरकरार रखा है जिस पर आरोप था कि वह प्रोटेक्टेड रेज़िडेंस पर गार्ड ड्यूटी के दौरान नशे में था। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने यह फैसला 11 सितंबर 2025 को अशोक कुमार त्रिपाठी बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (रिट अपील संख्या 1140/2025) में सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 4 अगस्त 2007 की घटना से जुड़ा है, जब कांस्टेबल अशोक कुमार त्रिपाठी को ग्वालियर स्थित बंगला नंबर 16 पर गार्ड ड्यूटी सौंपी गई थी। आरोप पत्र के अनुसार, वह ड्यूटी पर सोते हुए पाए गए और उन पर शराब पीने का संदेह जताया गया। विभागीय जांच के बाद, 31 दिसंबर 2007 को उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा दी गई। उनकी अपीलें डीआईजी, पुलिस महानिदेशक तथा बाद में हाई कोर्ट की एकलपीठ के समक्ष भी असफल रहीं।
इसके बाद त्रिपाठी ने 2025 में खंडपीठ का रुख किया और एकलपीठ द्वारा याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी। उनके वकील का तर्क था कि निष्कर्ष केवल “स्मेल टेस्ट” पर आधारित थे, कोई मेडिकल जांच या ब्रीथ एनालिसिस नहीं हुआ। साथ ही, डॉक्टर ने उन्हें “फिट” बताया था, इसलिए नशे का आरोप साबित नहीं माना जा सकता।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
पीठ ने विभागीय साक्ष्यों पर ध्यान दिया, खासकर डॉ. ए.के. सक्सेना की गवाही पर, जिन्होंने पुष्टि की थी कि याचिकाकर्ता की सांसों से शराब की गंध आ रही थी। न्यायमूर्तियों ने कहा: “पुलिस विभाग का कर्मचारी अगर ड्यूटी के दौरान शराब के नशे में हो तो यह कानून-व्यवस्था की समस्या और कर्तव्य की अवहेलना का कारण बन सकता है, जहां कई चीजें दांव पर होती हैं।”
न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि याचिकाकर्ता को इससे पहले भी ड्यूटी से अनुपस्थित रहने पर दंडित किया जा चुका था। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि आचरण से लापरवाही का पैटर्न झलकता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायिक समीक्षा में तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक कि दंड “चौंकाने वाला असंगत” न हो। यहां अनिवार्य सेवानिवृत्ति को न्यायसंगत माना गया।
दिलचस्प बात यह रही कि पीठ ने इस मामले से आगे बढ़कर आधुनिक समय की समस्या की ओर भी ध्यान दिलाया-ड्यूटी के दौरान पुलिसकर्मियों का मोबाइल और सोशल मीडिया में व्यस्त रहना। “आजकल यह आम देखा जाता है कि बंगलों पर गार्ड ड्यूटी, कोर्ट ड्यूटी या कानून-व्यवस्था की ड्यूटी पर लगे जवान मोबाइल और सोशल मीडिया में लगे रहते हैं। यह अनुशासनहीनता और कर्तव्य में लापरवाही पैदा करता है,” कोर्ट ने कहा और वरिष्ठ अधिकारियों को सुधारात्मक कदम उठाने का सुझाव दिया।
निर्णय
रिकॉर्ड की समीक्षा के बाद खंडपीठ ने त्रिपाठी की अपील खारिज कर दी और अनुशासनिक प्राधिकरण, पुलिस महानिदेशक तथा एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखा। अंत में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रति पुलिस महानिदेशक, भोपाल सहित वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी जाए ताकि संवेदनशीलता कार्यक्रम और सख्त निगरानी तंत्र पर विचार किया जा सके।
Case Title: Ashok Kumar Tripathi v. State of Madhya Pradesh & Others
Date of Judgment: September 11, 2025