मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने बुधवार को एक चालक की विधवा को दिए गए मुआवजे को पलट दिया, जिसकी मौत सड़क दुर्घटना में हो गई थी। न्यायमूर्ति आर. पूर्निमा ने कहा कि चूंकि मृतक स्वयं दुर्घटना का जिम्मेदार था और उसने वाहन अपने भाई से उधार लिया था, इसलिए वह "मालिक के स्थान पर" माना जाएगा और मोटर दुर्घटना दावों के तहत तीसरे पक्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला फरवरी 2009 का है, जब राजसेकर उर्फ चंद्रशेखर, उम्र 36 वर्ष, संकारनकोइल–कोविलपट्टी मुख्य सड़क पर टोयोटा क्वालिस चला रहे थे। वाहन पलट गया और उन्हें गंभीर चोटें आईं, जिनसे उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी अन्नलक्ष्मी ने तिरुनेलवेली की मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में ₹3,93,500 का मुआवजा मांगा। उन्होंने तर्क दिया कि उनके पति ही परिवार के इकलौते कमाने वाले थे, जो लगभग ₹3,000 प्रतिमाह कमाते थे, और उनकी अचानक मृत्यु ने परिवार को आर्थिक संकट में डाल दिया।
अधिकरण ने साक्ष्यों पर विचार करने के बाद पूरी मांग राशि 8% ब्याज सहित मंजूर की और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को मुआवजा जमा करने का आदेश दिया।
न्यायालय के अवलोकन
बीमा कंपनी ने इस आदेश को चुनौती दी और कहा कि मृतक ने स्वयं लापरवाही से वाहन चलाया था, और चूंकि कार उसके भाई की थी, इसलिए वह कानून की नजर में "तीसरा पक्ष" नहीं है। उनके वकील ने ज़ोर देते हुए कहा कि “जो व्यक्ति स्वयं दोषी हो, वह अपने ही कारण हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मांग सकता।”
न्यायमूर्ति पूर्निमा ने इस तर्क से सहमति जताई। सुप्रीम कोर्ट के रामखिलाड़ी बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस (2020) फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वाहन उधार लेने वाला या अनुमति से उपयोग करने वाला व्यक्ति मालिक की स्थिति में माना जाएगा।
उन्होंने टिप्पणी की, “जब कोई व्यक्ति वाहन उधार लेकर चलाता है, तो वह मालिक की भूमिका में आ जाता है। ऐसे में वह बीमा कंपनी से मुआवजा नहीं मांग सकता।”
एफआईआर और गवाहियों ने भी दावेदार के पक्ष को कमजोर किया। पुलिस रिकॉर्ड में स्पष्ट था कि मृतक ने ही लापरवाही से वाहन चलाया था। यहां तक कि जिरह के दौरान, विधवा ने स्वीकार किया कि उनके पति एक वेतनभोगी चालक नहीं थे और उन्होंने वाहन अपने भाई से उधार लिया था।
फैसला
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अधिकरण ने लापरवाही के पहलू का सही आकलन किए बिना ही मुआवजा दे दिया। न्यायमूर्ति पूर्निमा ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “मृतक स्वयं दुर्घटना के लिए जिम्मेदार था और इसलिए किसी भी दावे का हकदार नहीं है।”
हाईकोर्ट ने न्यू इंडिया एश्योरेंस द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और बीमा कंपनी को आदेश दिया कि यदि उसने कोई राशि जमा की हो तो उचित आवेदन देकर उसे वापस ले सकती है। अदालत ने किसी भी तरह की लागत (कॉस्ट) नहीं लगाई।
Case: New India Assurance Co. Ltd. vs. Annalakshmi & Anr.
Case No.: CMA (MD) No. 1866 of 2013
Date of Judgment: 24 September 2025