सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने एक सड़क दुर्घटना पीड़ित को मिले मुआवजे की राशि लगभग आधी कर दी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई पूरी राशि बहाल कर दी है।
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पृष्ठभूमि
दिसंबर 2015 की रात, मात्र 23 साल का एक युवक कुनिगल से नेलामंगला जा रहे ट्रक में लोडर का काम कर रहा था। लगभग ढाई बजे, एनएच-75 पर ट्रक तेज़ रफ्तार और लापरवाही से चलाते हुए एक अन्य वाहन से टकरा गया। हादसे में उसका दाहिना पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा और डॉक्टरों ने 85% स्थायी विकलांगता दर्ज की।
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उसने मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल (MACT) में ₹35 लाख का मुआवजा मांगा। ट्रिब्यूनल ने उसकी मासिक आय ₹9,000 मानते हुए विभिन्न मदों के तहत कुल ₹19,35,400 रुपये तय किए—इसमें दर्द और कष्ट, आजीविका की हानि, भविष्य की चिकित्सा, विवाह की संभावना पर असर आदि शामिल थे।
बीमा कंपनी ने इस पर आपत्ति जताई और हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। हाईकोर्ट ने ‘वर्कमेन कम्पेन्सेशन एक्ट’ का हवाला देकर आय को ₹8,000 मान लिया और मुआवज़ा घटाकर सिर्फ ₹10.41 लाख कर दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने इस दृष्टिकोण को गलत ठहराया। न्यायमूर्ति एन. वी. अंजरिया ने कहा—
“हाईकोर्ट ने वर्कमेन कम्पेन्सेशन एक्ट की कसौटी अपनाकर गलती की। एक बार जब दावा मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत किया गया और ट्रिब्यूनल ने उसी आधार पर आय तय कर दी, तब पीछे जाकर दूसरे कानून का सहारा लेना मुनासिब नहीं था।”
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पीठ ने मस्तान केस का हवाला देते हुए साफ किया कि मुआवज़े का दावा या तो मोटर व्हीकल्स एक्ट या वर्कमेन कम्पेन्सेशन एक्ट में किया जा सकता है, दोनों का मिश्रण संभव नहीं।
जहाँ तक भविष्य की संभावनाओं (Future Prospects) को जोड़ने की दलील थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूँकि पीड़ित ने ट्रिब्यूनल के फैसले के ख़िलाफ़ अपील नहीं की थी, इसलिए इस स्तर पर नए सिरे से यह मुद्दा नहीं उठाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का 2020 का आदेश निरस्त कर दिया और ट्रिब्यूनल द्वारा तय किया गया पूरा ₹19,35,400 का मुआवज़ा बहाल कर दिया। न्यायालय ने साफ कहा—“ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई ₹9,000 आय के आधार पर मुआवज़ा बहाल किया जाता है।”
Case Title: Mohammed Masood vs. The New India Assurance Co. Ltd. & Anr.
Case Number: Civil Appeal No. 12567 of 2024