सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कर्नाटक मोटर वाहन कराधान और अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम, 2003 (2003 अधिनियम) की संवैधानिकता को बरकरार रखा है। इस कानून के तहत, राज्य परिवहन प्राधिकरण (STA) के सचिव को राज्य के भीतर परिवहन परमिट जारी करने की शक्ति दी गई थी। कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि STA के नियमित कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने और प्रशासनिक देरी से बचने के लिए यह शक्ति सौंपना कानूनी रूप से उचित और व्यावहारिक है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
"यदि STA को यह अधिकार नहीं दिया जाता तो यह संस्था प्रशासनिक कार्यों में उलझकर रह जाती, जिससे परमिट जारी करने की प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होती। परिवहन सेवा की दक्षता बनाए रखने के लिए इस अधिकार का हस्तांतरण आवश्यक था।"
इस फैसले के अनुसार, अब STA सचिव अनुबंध वाहनों (Contract Carriages), विशेष वाहनों (Special Vehicles), पर्यटन वाहनों (Tourist Vehicles), और अस्थायी वाहनों (Temporary Vehicles) के परमिट जारी कर सकते हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पहले इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि 1976 का कर्नाटक अनुबंध वाहनों (अधिग्रहण) अधिनियम (KCCA) राष्ट्रपति की सहमति से लागू किया गया था, और इसे निरस्त करने के लिए भी राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा:
"एक कानून को निरस्त करने का अधिकार उसी संस्था के पास होता है जिसने इसे लागू किया है। यदि राज्य विधानसभा को 1976 में यह कानून बनाने की शक्ति थी, तो उसे 2003 में इसे निरस्त करने की शक्ति भी प्राप्त है।"
इस फैसले में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह संशोधन कानून केवल एक प्रशासनिक बदलाव है और इससे मौलिक संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता।
परमिट जारी करने की प्रक्रिया को कुछ लोगों ने एक न्यायिक प्रक्रिया बताया और कहा कि यह निर्णय बहु-सदस्यीय निकाय (Multi-Member Body) द्वारा लिया जाना चाहिए, न कि एकल सचिव द्वारा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
"प्रशासनिक दक्षता और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। सभी परमिट निर्णय न्यायिक प्रकृति के नहीं होते, बल्कि उनमें कई प्रशासनिक कार्य भी शामिल होते हैं। ऐसे मामलों में, सचिव को यह अधिकार सौंपना व्यावहारिक रूप से उचित और कानूनी रूप से वैध है।"
सालों से कर्नाटक में परिवहन नीति में बदलाव आया है। पहले, निजी बस ऑपरेटरों पर सख्त नियंत्रण था, जिससे परिवहन सेवाओं की उपलब्धता सीमित हो गई थी।
2003 संशोधन अधिनियम को लाने का कारण बताते हुए कोर्ट ने कहा:
"सरकार का उद्देश्य परिवहन सेवाओं में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और परिवहन सेवाओं की कमी को दूर करना था। इस कानून के तहत निजी ऑपरेटरों को अधिक भागीदारी की अनुमति दी गई, जिससे सार्वजनिक परिवहन को मजबूती मिली।"
STA सचिव को परमिट जारी करने की शक्ति मिलने से परिवहन सेवाएं अधिक सुचारू और तेज़ हो जाएंगी। पहले परमिट जारी करने में लगने वाला समय अब कम होगा और इससे आम जनता को लाभ मिलेगा।
इस फैसले से निजी बस ऑपरेटरों को राज्य के परिवहन क्षेत्र में अधिक भागीदारी करने का अवसर मिलेगा। इससे नई परिवहन सेवाएं शुरू करने में आसानी होगी और जनता के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे।
STA सचिव को परमिट जारी करने का अधिकार सौंपने से सरकारी प्रशासनिक प्रक्रिया अधिक प्रभावी और पारदर्शी होगी। इससे ट्रांसपोर्ट परमिट प्रक्रिया में देरी और लालफीताशाही को कम किया जा सकेगा।