Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाईकोर्ट ने उमेश @ काला की जमानत याचिका खारिज की, गैंग सिंडिकेट से जारी खतरे का दिया हवाला

Shivam Yadav

उमेश @ काला बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) - दिल्ली हाईकोर्ट ने मकोका केस में उमेश @ काला की जमानत याचिका खारिज की, गवाहों पर खतरे और गैंग गतिविधियों को बताया कारण।

दिल्ली हाईकोर्ट ने उमेश @ काला की जमानत याचिका खारिज की, गैंग सिंडिकेट से जारी खतरे का दिया हवाला

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार (18 सितंबर 2025) को कुख्यात गैंगस्टर कहे जा रहे उमेश @ काला की दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी। वह महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के तहत छह साल से अधिक समय से जेल में बंद है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि लंबे समय से हिरासत में रहने के बावजूद, गंभीर आरोप और टिल्लू गैंग में उसकी सक्रिय भूमिका के आरोप जमानत देने के खिलाफ भारी पड़ते हैं।

Read in English

पृष्ठभूमि

ताजपुर कलां, उत्तर- पश्चिम दिल्ली का निवासी उमेश कई मामलों में ट्रायल का सामना कर रहा है, जिनमें हत्या, रंगदारी और गैंगवार शामिल हैं। उसके वकीलों का कहना था कि उसे झूठा फंसाया गया है और कोई ठोस सबूत या बरामदगी यह नहीं दिखाती कि वह संगठित अपराध से जुड़ा था।

बचाव पक्ष ने मानवीय आधार भी रखे- पत्नी की खराब तबीयत, पिता की बाईपास सर्जरी की तत्काल ज़रूरत और इस तथ्य को कि अंतरिम जमानत पर जाने के दौरान उसने हमेशा शर्तों का पालन किया और समय पर सरेंडर किया।

Read Also : सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते NEET-PG में ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों पर सुनवाई करेगा

वकीलों ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि बिना सज़ा सुनाए साढ़े छह साल से अधिक हिरासत में रखना न्याय से पहले ही सज़ा देने जैसा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

राज्य पक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया और उमेश को ''सुनिल @ टिल्लू के अपराध सिंडिकेट का सक्रिय सदस्य'' बताया, जिस पर दिनदहाड़े गोलीबारी, प्रतिद्वंद्वियों और गवाहों की हत्या तथा दिल्ली- एनसीआर में संगठित रंगदारी का आरोप है। अभियोजन पक्ष का कहना था कि यदि उसे छोड़ा गया तो गवाहों की जान को खतरा होगा और गैंग गतिविधियाँ फिर से तेज़ हो सकती हैं।

Read Also : सिख जोड़ों को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आनंद कारज विवाह का पंजीकरण कराने का आदेश दिया

अदालत ने मकोका की धारा 21(4) के तहत ''दोहरी शर्तों'' का उल्लेख किया- जमानत तभी मिल सकती है जब अदालत को यक़ीन हो कि आरोपी दोषी नहीं है और बाहर जाकर कोई अपराध नहीं करेगा। न्यायमूर्ति कृष्णा ने टिप्पणी की,

''आवेदक इन दोनों कसौटियों पर खरा नहीं उतरता। अपराध करने और गवाहों को चुप कराने की प्रवृत्ति उसके पुराने मामलों से साफ़ झलकती है, जिसमें FIR 466/2015 में गवाह की हत्या भी शामिल है।''

अदालत ने यह भी कहा कि केवल ट्रायल में देरी जमानत का आधार नहीं बन सकती। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि लम्बी हिरासत जमानत के पक्ष में ज़रूर तौल सकती है, लेकिन संगठित अपराध जैसे मामलों में समाज का हित और न्याय प्रणाली की सुरक्षा पहले आती है।

Read Also : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ₹5 करोड़ रुपये से अधिक के गबन के आरोपी क्लर्क की जमानत याचिका खारिज की

फैसला

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति कृष्णा ने पाया कि ट्रायल आगे बढ़ रहा है- आरोप तय हो चुके हैं और दस गवाहों की गवाही भी हो चुकी है- इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कार्यवाही ठप है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर उमेश को छोड़ा गया तो उसके दोबारा गैंग अपराधों में लौटने का खतरा असली है।

''परिस्थितियाँ जमानत देने के लिए उचित नहीं हैं। आवेदन खारिज किया जाता है,''

आदेश में कहा गया। इस तरह उमेश की नियमित जमानत की कोशिश एक बार फिर असफल हो गई।

मामले का शीर्षक: उमेश @ काला बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)

मामला संख्या: जमानत आवेदन संख्या 1407/2025

Advertisment

Recommended Posts