सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई एक संक्षिप्त परंतु महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (ECI) ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया में आधार का उपयोग केवल पहचान प्रमाण के रूप में किया जा रहा है, न कि नागरिकता या जन्मतिथि प्रमाण के रूप में। अदालत में तेज़-तर्रार बहसें हुईं, और पीठ ने लगातार यह याद दिलाया कि क़ानून खुद आधार को पहचान प्रमाण के रूप में मान्यता देता है।
पीठ ने टिप्पणी की, “क़ानूनी प्रावधान साफ़ है, और UIDAI की अधिसूचना संसद के बनाए कानून को नहीं बदल सकती।”
पृष्ठभूमि
मामला अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर एक आवेदन से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने फॉर्म 6 में आधार के उपयोग पर रोक लगाने की मांग की थी। उनका कहना था कि कई बार आधार को आयु या नागरिकता साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे मतदाता पंजीकरण में गड़बड़ियां हो सकती हैं।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया-जो उसके सचिव संतोष कुमार दुबे की तरफ़ से दायर की गई-काफ़ी स्पष्ट थी। आयोग ने बताया कि 2021 के संशोधन के बाद प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4) में आधार-आधारित पहचान सत्यापन की अनुमति दी गई है ताकि एक ही व्यक्ति का नाम अलग-अलग जगहों पर दोहराया न जाए।
अपने रुख को मजबूती देते हुए ECI ने 2023 की UIDAI कार्यालय ज्ञापन और आधार अधिनियम की धारा 9 का हवाला दिया, जिनमें स्पष्ट लिखा है कि आधार न नागरिकता, न निवास, और न जन्मतिथि का प्रमाण है।
आयोग ने हालिया न्यायिक फैसलों का उल्लेख भी किया-जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय और सुप्रीम कोर्ट का Saroj v. IFFCO Tokio फैसला शामिल है-जहां आधार को उम्र साबित करने के लिए अमान्य माना गया था।
अदालत की टिप्पणियाँ
पिछले सप्ताह की सुनवाई में-और आज भी उसी भावना में-पीठ याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत नहीं दिखी कि फॉर्म 6 से आधार को पूरी तरह हटा दिया जाए।
एक न्यायाधीश थोड़ा आगे झुककर बोले, “जब तक धारा 23(4) मौजूद है, हम आधार के इस्तेमाल को रोक नहीं सकते। क़ानून इसकी अनुमति देता है।”
पीठ ने यह भी संकेत दिया कि संसद द्वारा किए गए नीति-निर्णय को अदालत आदेशों के ज़रिए अप्रत्यक्ष रूप से बदला नहीं जा सकता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि क़ानूनी प्रावधानों की ताकत प्रशासनिक अधिसूचनाओं से कहीं अधिक होती है।
सुनवाई का माहौल शांत लेकिन तीखा था। एक मौके पर, जब याचिकाकर्ता ने ज़मीनी स्तर पर ‘दुरुपयोग’ की संभावनाओं की बात रखी, तो एक न्यायाधीश ने हल्के लेकिन स्पष्ट स्वर में कहा, “चिंताएँ जायज़ हैं, पर समाधान यह नहीं हो सकता कि हम क़ानून को उसकी असली भाषा के उलट पढ़ें।”
निर्णय
कम समय की इस सुनवाई के अंत में अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक क़ानून आधार को पहचान सत्यापन के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है, तब तक उसे फॉर्म 6 से हटाया नहीं जा सकता।
ECI ने भी अपने हलफ़नामे में बताया कि उसने 9 सितंबर 2025 को सभी मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश भेज दिए हैं कि आधार का उपयोग केवल पहचान प्रमाण के रूप में किया जाए-उसी तरह जैसा क़ानून कहता है।
अंततः, अदालत का निष्कर्ष यही रहा कि मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया में आधार की भूमिका RP Act, 1950 की धारा 23(4) के तहत केवल पहचान सत्यापन तक सीमित है। सुनवाई इसी स्पष्टिकरण के साथ समाप्त हुई।
Case Title: Ashwini Kumar Upadhyay v. Union of India & Others