वसई-विरार के अवैध निर्माण मामले में एक नए मोड़ के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें निलंबित IAS अधिकारी अनिल कुमार पवार की गिरफ्तारी को “अवैध” घोषित किया गया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की खंडपीठ के समक्ष हुई सुनवाई में ED और बचाव पक्ष के बीच तीखी बहस हुई, दोनों एक-दूसरे पर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगा रहे थे।
पीठ ने कहा, “प्रतिवादी अपने काउंटर हलफनामे दाखिल करें। हम रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री देखने के बाद ही कोई टिप्पणी करेंगे,” यह संकेत देते हुए कि शीर्ष अदालत फिलहाल किसी जल्दबाजी में नहीं है।
पृष्ठभूमि
यह विवाद 2008 से 2010 के बीच वसई-विरार में हुए कथित अवैध निर्माण से जुड़ा है। ED के अनुसार, नगर निगम के अधिकारियों और निजी बिल्डरों ने मिलकर 41 अवैध इमारतों को मंजूरी दी, जिससे भारी राजस्व नुकसान हुआ। 2019 में पहली एफआईआर दर्ज की गई थी, और 2025 में ED ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की, जिसमें “अपराध की आय” लगभग ₹300 करोड़ बताई गई।
पवार, जो उस समय वसई-विरार सिटी म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (VVCMC) के आयुक्त के रूप में कार्यरत थे, को 13 अगस्त 2025 को ED ने गिरफ्तार किया था। एजेंसी का आरोप है कि उन्होंने अवैध निर्माणों पर आंखें मूंद लीं और रिश्वत लेकर मामलों को दबाया। ED ने यह भी कहा कि उनका संबंध पूर्व शहरी नियोजन अधिकारी वाई.एस. रेड्डी से था, जिनके घर से छापे के दौरान सोने के गहने और नकदी बरामद हुई थी।
हालांकि पवार ने लगातार यह दावा किया है कि उन्होंने 2022 में ही VVCMC जॉइन किया था, इसलिए पुराने निर्माणों में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। उनके वकील वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव शाकधर ने कोर्ट में कहा, “जब मैं उस वक्त वहां था ही नहीं तो मुझे कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?”
अदालत की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू, जो ED की ओर से पेश हुए, ने कहा कि गिरफ्तारी ठोस सबूतों के आधार पर की गई थी। उन्होंने कहा, “माय लॉर्ड्स अगर व्हाट्सएप चैट्स देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे,” यह जोड़ते हुए कि मनी ट्रेल और बिल्डरों के बयान पवार और रेड्डी के बीच संबंध को स्पष्ट करते हैं।
लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले ही इस तर्क को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि ED के पास पवार की गिरफ्तारी के समय “कोई ठोस सामग्री” नहीं थी। अदालत ने यह भी पाया कि न तो पवार और न ही उनके परिवार से कोई बरामदगी हुई, और ₹17.75 करोड़ मिलने का आरोप भी किसी दस्तावेज़ या डिजिटल साक्ष्य से पुष्ट नहीं था।
हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी की थी “वाई.एस. रेड्डी के ‘कोडवर्ड सिस्टम’ वाले बयान के आधार पर जो केस तैयार किया गया है, वह कहीं नहीं जाता, क्योंकि पवार या उनके परिवार के पास से कोई आपत्तिजनक चीज़ बरामद नहीं हुई।”
अदालत ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी के बाद ED द्वारा जुटाए गए सबूत गिरफ्तारी को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल नहीं किए जा सकते- यही बिंदु ED की कानूनी स्थिति के लिए सबसे कमजोर साबित हुआ।
निर्णय
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने किसी त्वरित राहत से परहेज करते हुए केवल नोटिस जारी किया है और पवार व अन्य प्रतिवादियों से काउंटर हलफनामा मांगा है।
फिलहाल, पवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश से राहत मिली हुई है, जिसने उनकी गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए ED की ‘स्टे’ मांग को ठुकरा दिया था।
यह मामला Directorate of Enforcement vs. Anilkumar Khanderao Pawar & Anr (SLP (Crl) No. 16841/2025) अब अगली सुनवाई में फिर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आएगा।
जैसा कि एक वकील ने कोर्ट रूम के बाहर कहा, “लड़ाई अभी शुरू हुई है। सुप्रीम कोर्ट का नोटिस मतलब असली जंग अब शुरू होने वाली है।”
Case: Directorate of Enforcement vs. Anilkumar Khanderao Pawar & Anr.
(SLP (Crl) No. 16841/2025)
Court: Supreme Court of India
Bench: Justices Vikram Nath and Sandeep Mehta
Date of Order: October 27, 2025