नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम आदेश पारित करते हुए उत्तराखंड सरकार को कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक पुनर्स्थापन शुरू करने का निर्देश दिया। यह निर्देश उस विवादित पाखराऊ टाइगर सफारी के निर्माण के दौरान हुए पर्यावरणीय नुकसान की पृष्ठभूमि में आया है, जिसने अदालत में बार-बार चिंता बढ़ाई थी। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि अब जंगलों में “विकास” के नाम पर ढील का दौर खत्म हो चुका है। पीठ ने टिप्पणी की, “दृष्टिकोण मनुष्य-केंद्रित नहीं, प्रकृति-केंद्रित होना चाहिए।”
पृष्ठभूमि
मामला सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2024 के उस निर्णय से जुड़ा है, जिसमें कॉर्बेट में टाइगर सफारी बनाने के नाम पर पेड़ काटने, अवैध निर्माण और भारी भूमि-समतलीकरण को गंभीर रूप से गलत ठहराया गया था। अदालत ने तब एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था ताकि जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान हो सके और भविष्य के लिए वैज्ञानिक नियम बनाए जा सकें।
कई दौर की बैठकों और फील्ड निरीक्षणों के बाद समिति ने एक विस्तृत रिपोर्ट जमा की, जिसमें बताया गया कि किस तरह वन मार्ग, कलवर्ट और संरचनाएँ संरक्षण मानकों की अवहेलना कर बनाई गईं। रिपोर्ट ने पर्यावरणीय नुकसान का आकलन भी किया, जिस पर उत्तराखंड सरकार ने तुरंत आपत्ति जताई।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने कहा कि पारिस्थितिक पुनर्स्थापन अब एक “नैतिक अपेक्षा” नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21, 48A और 51A(g). के तहत एक बाध्यकारी कर्तव्य है।
भारत की जैव-विविधता प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए अदालत ने कहा, “पुनर्स्थापन उसी मूल अवस्था में होना चाहिए, जितना वैज्ञानिक रूप से संभव हो।”
समिति की मुख्य सिफारिशों का समर्थन करते हुए अदालत ने माना कि:
- टाइगर सफारी किसी भी स्थिति में कोर या क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में नहीं हो सकती।
- केवल बफ़र या फ्रिंज क्षेत्रों में, वह भी गैर-वन भूमि या क्षतिग्रस्त वन भूमि पर ही स्थापित हो सकती है।
- सफारी में सिर्फ़ उसी परिदृश्य के घायल, संघर्षग्रस्त या अनाथ बाघ रखे जा सकते हैं, और उसके लिए एक कार्यशील रेस्क्यू सेंटर होना अनिवार्य होगा।
अदालत ने पर्यटन को लेकर भी तीखी टिप्पणी की-“मास टूरिज़्म को इको-टूरिज़्म कह कर नहीं चलाया जा सकता।”
जब राज्य सरकार के वकील ने समिति द्वारा आंकी गई लगभग ₹29.8 करोड़ की क्षति पर कड़ी आपत्ति जताई, तो अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा, “हम आंकड़ों की दोबारा जांच नहीं करेंगे।”
निर्णय
समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया कि:
- दो महीने के भीतर कॉर्बेट के लिए विस्तृत पारिस्थितिक पुनर्स्थापन योजना दाखिल की जाए, और इसे CEC की सलाह के साथ तैयार किया जाए।
- तीन महीनों के भीतर सभी अवैध निर्माणों को हटाने की कार्रवाई शुरू की जाए।
- एक वर्ष के भीतर विस्तृत अनुपालन हलफ़नामा दाखिल किया जाए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल देशज प्रजातियाँ ही पुनर्स्थापन में प्रयोग होंगी और संपूर्ण प्रक्रिया पर CEC की निगरानी होगी।
यह आदेश, जो मामले की निगरानी जारी रखने की मंशा के साथ दिया गया है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण बाघ आवासों में से एक की रक्षा के लिए हाल के वर्षों का सबसे कठोर न्यायिक हस्तक्षेप माना जा रहा है।
लेख यहीं समाप्त होता है, ठीक न्यायालय के निर्णय पर, जैसा निर्देशित था।
In Re: Corbett – Supreme Court Directions on Ecological Restoration and Tiger Safari Regulations (2025)
Case Name: T.N. Godavarman Thirumulpad v. Union of India & Others
Proceeding: Ongoing environmental writ petition (W.P. (C) No. 202 of 1995)
Specific Matter: In Re: Corbett – IA No. 20650/2023, IA 75033/2023, IA 199355/2024
Court: Supreme Court of India
Bench: Chief Justice B.R. Gavai (CJI)
Date of Judgment: 2025