गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा “अभ्यपगत” (Abated) घोषित की गई एक आपराधिक रिवीजन को पुनर्जीवित करते हुए हस्तक्षेप किया, जो मूल सूचना देने वाले की कार्यवाही के दौरान मृत्यु के बाद बंद कर दी गई थी। खचाखच भरे कोर्टरूम में बैठी पीठ ने साफ कहा कि सिर्फ इसलिए कि शिकायत लेकर आने वाला व्यक्ति अब जीवित नहीं है, आपराधिक न्याय व्यवस्था को ठप नहीं किया जा सकता।
यह मामला एक संपत्ति विवाद से जुड़ा था, जिसने बाद में कथित धोखाधड़ी और जालसाजी का रूप ले लिया। मृत सूचना देने वाले के बेटे ने आगे मुकदमा लड़ने की अनुमति मांगी थी।
पृष्ठभूमि
विवाद की शुरुआत तब हुई जब अपीलकर्ता सैयद शहनवाज़ अली के पिता शमशाद अली ने मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देकर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की। आरोप था कि कुछ लोगों ने फर्जी बिक्री विलेख तैयार कर उनकी संपत्ति पर झूठा दावा किया है। पुलिस जांच के बाद चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश सहित कई धाराएं लगाई गईं।
मार्च 2020 में सत्र न्यायालय ने अधिकांश आरोपों से अभियुक्तों को डिस्चार्ज कर दिया और केवल धोखाधड़ी के आरोप पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। इस आदेश से असंतुष्ट होकर शमशाद अली ने हाईकोर्ट में आपराधिक रिवीजन दायर की। लेकिन मई 2021 में रिवीजन लंबित रहते हुए उनका निधन हो गया।
इसके बाद उनके बेटे ने रिवीजन जारी रखने की अनुमति मांगी। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि आपराधिक रिवीजन में प्रतिस्थापन का कोई प्रावधान नहीं है और मामला स्वतः समाप्त हो गया है। उस आदेश को वापस लेने की अर्जी भी खारिज कर दी गई, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अलग नजरिया अपनाया। पीठ ने सरल शब्दों में समझाया कि आपराधिक रिवीजन और अपील एक जैसी नहीं होतीं। अपीलों के विपरीत, रिवीजन न्यायालय की वह निगरानी शक्ति है, जिसके जरिए यह देखा जाता है कि न्याय ठीक से हुआ या नहीं।
पीठ ने कहा, “रिवीजन की शक्ति विवेकाधीन है और इसका उद्देश्य आदेश की वैधता और उचितता की जांच करना है।” अदालत ने जोड़ा कि जब एक बार रिवीजन स्वीकार कर ली जाती है, तो अदालत से अपेक्षा होती है कि वह चुनौती दिए गए आदेश की मेरिट पर जांच करे।
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायाधीशों ने कहा कि आपराधिक रिवीजन में पक्षकारिता (locus standi) के सख्त तकनीकी नियम लागू नहीं होते। आपराधिक कानून में “पीड़ित” की परिभाषा का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता, जो विवादित संपत्ति का उत्तराधिकारी है, इस मामले में सीधा और वास्तविक हित रखता है। “उसे कार्यवाही का बाहरी व्यक्ति नहीं माना जा सकता,” पीठ ने टिप्पणी की।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही रिवीजन में प्रतिस्थापन का कोई स्वतः अधिकार न हो, लेकिन कानून में ऐसा कोई प्रावधान भी नहीं है जो रिवीजन को अनिवार्य रूप से समाप्त घोषित करे। हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को अत्यधिक तकनीकी बताते हुए पीठ ने कहा कि जहां अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा अभी भी लंबित है, वहां न्याय के हित में लचीलापन जरूरी है।
निर्णय
हाईकोर्ट के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक रिवीजन को बहाल कर दिया और मृत सूचना देने वाले के बेटे को पीड़ित के रूप में अदालत की सहायता करने की अनुमति दी। पीठ ने निर्देश दिया कि रिवीजन का निपटारा शीघ्रता से किया जाए, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उसने डिस्चार्ज आदेश के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।
Case Title: Syed Shahnawaz Ali v. State of Madhya Pradesh & Others
Case No.: Criminal Appeal Nos. 5589–5590 of 2025 (arising out of SLP (Crl.) Nos. 1715–1716 of 2025)
Case Type: Criminal Appeal (Revisional Jurisdiction Issue)
Decision Date: December 19, 2025