सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सड़क दुर्घटना मामलों में पीड़ित की मौत के बाद भी कानूनी वारिस ले सकेंगे मुआवजा

By Vivek G. • September 28, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने कहा: सड़क दुर्घटना पीड़ित की मौत के बाद भी वारिस मुआवजा ले सकते हैं; 20 लाख से अधिक की राशि बढ़ाई गई।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि सड़क दुर्घटना मामलों में मुआवजे का अधिकार पीड़ित की मौत के साथ खत्म नहीं होता। 26 सितम्बर 2025 को न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह फैसला सुनाया। यह मामला धन्नालाल उर्फ धनराज से जुड़ा था, जो एक सड़क दुर्घटना में 100% विकलांग हो गए थे और अपील लंबित रहने के दौरान उनका निधन हो गया।

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पृष्ठभूमि

धन्नालाल 2013 में एक गंभीर सड़क हादसे में घायल हुए थे। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने उन्हें मुआवजा दिया, लेकिन वह रकम से संतुष्ट नहीं थे और अधिक मुआवजे की मांग की। हाईकोर्ट ने राशि थोड़ी बढ़ाई, लेकिन उनकी आय को लेकर किए गए दावे को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, परन्तु अप्रैल 2024 में धन्नालाल का निधन हो गया। इसी आधार पर बीमा कंपनी ने आपत्ति उठाई कि अब उनके वारिसों को अपील जारी रखने का अधिकार नहीं है।

बीमा कंपनी ने पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की फुल बेंच का निर्णय भी शामिल था, जहाँ कहा गया था कि व्यक्तिगत चोट से संबंधित दावा पीड़ित की मौत के बाद समाप्त हो जाता है। उन्होंने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 306 का भी उल्लेख किया, जो कुछ व्यक्तिगत दावों के वारिसों तक न पहुँचने की बात करता है।

अदालत की टिप्पणियाँ

पीठ ने हालांकि 2019 में मोटर वाहन अधिनियम में हुए संशोधन पर ध्यान दिलाया। इस संशोधन से धारा 166 में उपधारा (5) जोड़ी गई, जिसमें साफ लिखा गया है कि चोट का मुआवजा पाने का अधिकार कानूनी वारिसों तक पहुँचता है, “चाहे मृत्यु दुर्घटना से जुड़ी हो या नहीं।”

पीठ ने कहा, “सड़क दुर्घटना में लगी चोट का मुआवजा पाने का अधिकार, पीड़ित की मौत हो जाने पर भी उसके कानूनी वारिसों तक पहुँचता है।” बीमा कंपनी की आपत्ति को खारिज करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार जब मुआवजा देय हो जाता है, तो वह पीड़ित की संपत्ति का हिस्सा बन जाता है, जिसे कानूनी वारिस प्राप्त कर सकते हैं।

आय के आकलन पर अदालत ने ट्रिब्यूनल के उस फैसले से असहमति जताई, जिसमें धन्नालाल की मासिक आय को केवल ₹4,030 मान लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसलों का हवाला देते हुए उनकी आय ₹9,000 मासिक तय की और 25% की वृद्धि भविष्य की संभावनाओं के रूप में जोड़ी। फैसले में कहा गया, “हम यह मानते हैं कि दुर्घटना के समय उनकी मासिक आय ₹9,000 मानना उचित होगा।”

अदालत ने यह भी कहा कि चूँकि पीड़ित दुर्घटना के बाद केवल 11 वर्ष ही जीवित रहे और वह भी शारीरिक रूप से अशक्त अवस्था में, इसलिए सामान्यतः उम्र के आधार पर जो 14 का गुणक लगाया जाता है, उसे घटाकर 11 करना चाहिए।

निर्णय

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कुल मुआवजा ₹20,37,095 तय किया, जिसमें इलाज का खर्च, पीड़ा व कष्ट, देखभाल तथा आय की हानि शामिल हैं। साथ ही, अदालत ने आदेश दिया कि इस राशि पर 9% ब्याज दावा याचिका दायर करने की तिथि से लेकर वास्तविक भुगतान तक दिया जाएगा। हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई ब्याज की पाबंदी को रद्द कर दिया गया। बीमा कंपनी को तीन महीने के भीतर शेष राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है, पहले से दी गई रकम को घटाकर।

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि सड़क दुर्घटना मामलों में मुआवजा पीड़ित की मौत के बाद भी खत्म नहीं होता और परिवार को न्याय दिलाना अदालत की जिम्मेदारी है।

Case Title: Dhannalal Alias Dhanraj (Dead) Through Legal Representatives vs. Nasir Khan & Others

Case Number: Civil Appeal No. 2159 of 2024

Date of Judgment: 26 September 2025

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