सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार रिपोर्ट में भीड़, जातिगत पक्षपात और मानसिक स्वास्थ्य संकट की कड़वी सच्चाइयाँ उजागर, राष्ट्रव्यापी नीति परिवर्तन की तात्कालिक जरूरत

By Vivek G. • November 23, 2025

भारत की सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट में जेल भीड़भाड़, जातिगत भेदभाव और मानसिक-स्वास्थ्य की कमजोरियाँ उजागर, राज्यों को नियम संशोधन का तात्कालिक आदेश।

सुप्रीम कोर्ट में एक शांत-सी सर्द दोपहर को “Prisons in India: Mapping Prison Manuals and Measures for Reformation and Decongestion” नामक रिपोर्ट जारी हुई-और उसी समय अदालत के गलियारों में हलचल बढ़ गई।
CRP (Centre for Research and Planning) द्वारा तैयार की गई 2025 की यह संशोधित रिपोर्ट भारतीय जेलों की ऐसी तस्वीर पेश करती है जो कई बार हमारे संवैधानिक आदर्शों से तीखे विरोध में खड़ी दिखती है।

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टीम से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “यह केवल डॉक्यूमेंटेशन नहीं, बल्कि एक आईना है।” कमरे का माहौल भी इसी भाव को दर्शाता था।

भीड़भाड़ अब भी व्यवस्था को तोड़ रही है

रिपोर्ट की शुरुआत उसी बात से होती है जिसका जिक्र जज बार-बार करते रहे हैं-भारतीय जेलें फटने की कगार पर हैं। 131.4% की ओक्यूपेंसी और 2022 में 75.8% बंदी अंडरट्रायल होने के साथ, सिस्टम पर स्पष्ट रूप से दबाव है।

CRP के एक शोधकर्ता ने प्रेस से कहा, “जिस व्यक्ति का दोष सिद्ध ही नहीं हुआ, वह यदि वर्षों जेल में इंतज़ार करे, तो सुधार की बात कैसे होगी?”

NCRB के आँकड़े भी यही बताते हैं-सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही देश के पाँचवें हिस्से जितने अंडरट्रायल बंदी हैं।

जेल के भीतर अब भी जाति की परछाइयाँ

रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा वह है जिसमें जेल मैनुअल में आज भी मौजूद जाति-आधारित शब्दों और काम के विभाजन की आलोचना की गई है।
कई राज्यों के मैनुअल अब भी “menial work”, “degrading duties”, “suitable caste”, “good caste” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

ओडिशा में तो खाना बनाने और अस्पताल में सहायता जैसे काम भी menial कहे गए हैं।

रिपोर्ट कहती है कि ऐसी भाषा सिर्फ पुरानी नहीं-बल्कि संस्थागत जातिगत पदक्रम को जीवित रखती है।

सुप्रीम कोर्ट पहले ही 2024 के Sukanya Shantha v. Union of India फैसले में ऐसी नियमावलियों को हटाने का आदेश दे चुका है, लेकिन CRP के अनुसार ज़मीन पर बदलाव अभी भी अधूरा है।

ब्रीफिंग के दौरान एक अधिकारी ने कहा,“नियम बदलना आसान है, संस्थागत मानसिकता बदलना उतना आसान नहीं होता।”

जेलों में मानसिक-स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति

रिपोर्ट बताती है कि बंदियों के प्रवेश फॉर्म में मानसिक-स्वास्थ्य मूल्यांकन के लिए अलग स्थान ही नहीं है। और उससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि कई राज्यों में मेडिकल ऑफिसरों को मानसिक स्वास्थ्य की वह बुनियादी ट्रेनिंग नहीं मिली है जो Mental Healthcare Act, 2017 में अनिवार्य है।

NHRC ने निर्देश दिया है कि प्रवेश के समय किए गए स्वास्थ्य परीक्षण पर डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक-दोनों के हस्ताक्षर होने चाहिए, लेकिन अधिकतर राज्यों में यह पालन नहीं होता।

रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि 55,502 कैदियों ने 2023 में पदार्थ-दुरुपयोग की समस्या बताई-लेकिन पर्याप्त डी-ऐडिक्शन केंद्र नहीं हैं।

महिला बंदियों के मुद्दे: अक्सर अनदेखे

डेटा कहता है कि 80.2% महिला कैदी मासिक धर्म आयु समूह में आती हैं।
फिर भी कई जेलें सीमित सैनिटरी सामग्री देती हैं या निपटान के लिए पुराने गड्ढा-तंत्र का प्रयोग करती हैं।

केरल उन कुछ राज्यों में है जो महिला बंदियों को मेन्स्ट्रुअल कप की ओर प्रोत्साहित करता है।

और भी गंभीर यह कि प्रजनन अधिकार, खासकर गर्भसमापन, अधिकांश जेल नियमों में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है-जिससे समय-संवेदनशील निर्णयों में देरी होती है।

जमानत: अब भी नियम नहीं, अपवाद

कुछ आँकड़े बेहद चुभने वाले हैं:

  • सेशंस कोर्ट में जमानत अस्वीकृति दर: 32.3%
  • 24,879 लोग जमानत मिलने के बाद भी सिर्फ इसलिए जेल में हैं क्योंकि वे बॉन्ड भर नहीं पाए। 2025112244-1

रिपोर्ट ने पर्सनल बॉन्ड, कैश श्योरिटी, और सामाजिक-आर्थिक जाँच जैसे उपायों के व्यापक उपयोग की सिफारिश की है-क्योंकि गरीबी सजा नहीं हो सकती।

अदालत का संदेश: सुधार, प्रतिशोध नहीं

रिपोर्ट के अंतिम हिस्से में वही बात दोहराई गई है जो कभी जस्टिस कृष्ण अय्यर ने कही थी और जो रिपोर्ट की शुरुआत में भी उद्धृत है-"जेल की स्थिति सुधारने का मतलब उसे नरम बनाना नहीं, बल्कि मानवीय और समझदारीपूर्ण बनाना है।”

रिपोर्ट खुलकर कहती है कि हमें समान मानक, मजबूत कानूनी सहायता, व्यावहारिक ओपन जेल, और तकनीक का संतुलित उपयोग चाहिए-न कि निगरानी के ऐसे तरीक़े जो निजता पर हमला करें।

अदालत का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश पूरी तरह स्पष्ट है: सभी राज्य अपनी जेल नियमावलियों की समीक्षा करें, भेदभावपूर्ण प्रावधान हटाएँ, मानसिक-स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत करें और भीड़ घटाने की दिशा में वास्तविक कदम उठाएँ।

और इसी के साथ रिपोर्ट समाप्त होती है-उत्सव के साथ नहीं, बल्कि एक तीव्र चेतावनी की तरह।

Document Title: Prisons in India: Mapping Prison Manuals and Measures for Reformation and Decongestion

Prepared By: Centre for Research & Planning (CRP),
Supreme Court of India

Document Type: Research Report / Policy Analysis Report

Publication Date: November 2025 (Revised Edition)

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