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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पतंजलि के ₹273.5 करोड़ के जीएसटी जुर्माने के खिलाफ याचिका खारिज की

Shivam Y.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीजीएसटी एक्ट की धारा 122 के तहत पतंजलि पर लगे ₹273.5 करोड़ के जुर्माने को सही ठहराया, जबकि धारा 74 के तहत टैक्स डिमांड हटाई जा चुकी थी। जानें पूरी कानूनी प्रक्रिया और अदालत की दलीलें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पतंजलि के ₹273.5 करोड़ के जीएसटी जुर्माने के खिलाफ याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सीजीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 122 के तहत ₹273.5 करोड़ के जीएसटी जुर्माने को चुनौती दी गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 122 के तहत कार्यवाही स्वतंत्र रूप से जारी रह सकती है, भले ही धारा 74 के तहत टैक्स से संबंधित कार्यवाही समाप्त कर दी गई हो।

यह मामला पतंजलि की तीन निर्माण इकाइयों—हरिद्वार (उत्तराखंड), सोनीपत (हरियाणा) और अहमदनगर (महाराष्ट्र)—से संबंधित था। इन इकाइयों को अप्रैल 2018 से मार्च 2022 की अवधि के लिए सीजीएसटी एक्ट की धारा 74 और 122 तथा आईजीएसटी एक्ट की धारा 20 के तहत नोटिस जारी किया गया था। विभाग ने आरोप लगाया कि पतंजलि ने "सर्कुलर ट्रेडिंग" की—यानी वास्तविक माल की आपूर्ति के बिना केवल कागज़ी इनवॉइस जारी किए।

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प्रारंभ में, अदालत ने अंतरिम राहत दी और पतंजलि को उत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई। बाद में, सभी तीन इकाइयों के लिए धारा 74 के तहत कार्यवाही समाप्त कर दी गई। लेकिन धारा 122 के तहत जुर्माने की कार्यवाही जारी रही, जिस पर पतंजलि ने पुनः उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि धारा 74 टैक्स संबंधी दायित्वों पर केंद्रित है जबकि धारा 122 विभिन्न उल्लंघनों के लिए दंड देती है।

“वर्तमान जीएसटी व्यवस्था में, कोई व्यक्ति यदि धारा 73/74 के तहत टैक्स का उत्तरदायी नहीं भी हो, तब भी वह धारा 122 के तहत उल्लंघनों के लिए दंडित हो सकता है।”

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अदालत ने कहा कि धारा 122 उन कार्यों को दंडित करती है जो जरूरी नहीं कि टैक्स चोरी हों, बल्कि ऐसे आचरण भी शामिल हैं जो प्रक्रिया का उल्लंघन करते हैं जैसे कि फर्जी इनवॉइस जारी करना और गलत आईटीसी लेना।

“दंड हमेशा आपराधिक प्रक्रिया के जरिये नहीं दिया जाता; यह वैधानिक रूप से जुर्माने के रूप में भी हो सकता है।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 122 की कार्यवाही धारा 73/74 के समाप्त होने के बावजूद जारी रह सकती है, विशेष रूप से जब फर्जी इनवॉइस जारी किए गए हों।

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पतंजलि के वकीलों ने तर्क दिया कि धारा 122 के तहत लगाया गया जुर्माना आपराधिक प्रकृति का है और इसके लिए उचित मुकदमे की आवश्यकता है, लेकिन अदालत ने असहमति जताई।

“अधिकारियों द्वारा लगाया गया दंड कोई सजा नहीं है, बल्कि नागरिक उल्लंघन का निर्धारण है।”

अदालत ने कहा कि धारा 122(1A) के तहत वह व्यक्ति भी दंड का पात्र हो सकता है जो उस लेनदेन से लाभान्वित हुआ हो, भले ही वह मुख्य आरोपी न हो।

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“धारा 122 के तहत कार्यवाही धारा 73 या 74 के बिना भी शुरू की जा सकती है।”

अदालत ने यह भी कहा कि कर कानूनों की व्याख्या सख्ती से की जानी चाहिए और उन प्रावधानों को इस प्रकार पढ़ा जाना चाहिए जिससे कानून प्रभावी रह सके।

अंततः, अदालत ने कहा कि यदि धारा 74 के तहत कार्यवाही समाप्त हो जाती है, तब भी धारा 122 के तहत जुर्माने की कार्यवाही स्वतः समाप्त नहीं होती। इसलिए, पतंजलि के खिलाफ धारा 122 के तहत की गई कार्यवाही वैध है।

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“अदालती आदेश के तहत लगाया गया जुर्माना सजा नहीं बल्कि एक नागरिक दायित्व का निर्धारण होता है।”

अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

मामले का नाम: एम/एस पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड बनाम भारत संघ व अन्य

निर्णय दिनांक: 29 मई 2025

खंडपीठ: न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित

याचिकाकर्ता के वकील: श्री अरविंद पी. दातार (वरिष्ठ अधिवक्ता)

प्रतिवादी के वकील: श्री एन. वेंकटरमन (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल)