कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस अपील पर सुनवाई की, जिसमें पूर्व मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) आयुक्त डॉ. नतेशा डी.बी. को जारी समन को रद्द करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। ED ने तर्क दिया कि इस आदेश ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वथी को कथित रूप से अवैध भूमि आवंटन की जांच को बाधित कर दिया है।
समन रद्द करने के आदेश पर ED का पक्ष
ED ने दलील दी कि एकल न्यायाधीश का आदेश पूरी तरह से अनुचित है और इससे भविष्य में होने वाली जांच प्रभावित होगी। आदेश में डॉ. नतेशा के आवास पर की गई तलाशी और जब्ती को अवैध घोषित किया गया था क्योंकि इसमें 'विश्वास करने का कारण' नहीं था। साथ ही, PMLA की धारा 50 के तहत उन्हें जारी समन को भी रद्द कर दिया गया।
अदालत ने कहा:
"प्रवर्तन निदेशालय PMLA में निर्धारित प्रक्रिया संबंधी निष्पक्षता की अनदेखी नहीं कर सकता। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, और नागरिक स्वतंत्रता में कोई भी कटौती विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही होनी चाहिए।"
खंडपीठ के समक्ष ED की अपील
मुख्य न्यायाधीश एन वी अंजारिया और न्यायमूर्ति के वी अरविंद की खंडपीठ ने ED की उस अपील पर सुनवाई की जिसमें आदेश पर रोक लगाने या इसे एक मिसाल बनने से रोकने की मांग की गई थी।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस वी राजू ने ED का पक्ष रखते हुए PMLA की धारा 17 का हवाला दिया:
"विश्वास करने का कारण संदेह से अलग होता है। यदि विश्वसनीय जानकारी के आधार पर पहला निष्कर्ष निकाला गया हो, तो केवल संदेह के आधार पर भी समन जारी किया जा सकता है। लेकिन इस आदेश ने तलाशी को अवैध घोषित कर दिया है, जिससे अन्य आरोपी जमानत ले सकते हैं।"
आदेश का प्रभाव और ED की आपत्तियाँ
ASG राजू ने बताया कि B S सुरेश और मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वथी के मामले में भी समन रद्द किया गया था। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यह आदेश अन्य आरोपियों को भी लाभ पहुँचा सकता है:
"यदि यह आदेश बरकरार रहता है, तो यह पूरे राज्य में प्रभावी होगा। ED को धारा 50 के बयान का उपयोग कर आरोपियों की जमानत का विरोध करने में कठिनाई होगी, जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत होगा। चूंकि इस फैसले का व्यापक प्रभाव है, इसलिए इसे रोके जाने से प्रतिवादी को कोई नुकसान नहीं होगा।"
उन्होंने आगे कहा:
"पहले से ही एक प्राथमिक अपराध दर्ज किया जा चुका है, जो ED की जांच को उचित ठहराता है। यह अपराध अवैध रूप से अर्जित संपत्ति से संबंधित है, जिससे यह धारा 17 के तहत आता है।"
ED के अनुसार, प्रभावशाली लोगों को अवैध रूप से भूखंड आवंटित करना मनी लॉन्ड्रिंग का प्राथमिक मामला है। राजू ने कहा:
"प्रतिवादी सिर्फ एक मूकदर्शक नहीं था; वह MUDA के आयुक्त थे और उन्होंने अवैध रूप से साइट आवंटन की निगरानी की थी। समन रद्द कर दिया गया है, जिससे हमारी जांच प्रभावी रूप से बाधित हो गई है।"
जब अदालत ने पूछा कि क्या वापस लिया गया बयान अन्य आरोपियों के खिलाफ उपयोग किया जा सकता है, तो राजू ने उत्तर दिया:
"स्वीकृति बयान को साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है, भले ही गिरफ्तारी न हुई हो। आमतौर पर बयान वापस लेने वाला वही व्यक्ति होता है जिसने इसे दिया है, न कि कोई तीसरा पक्ष जैसे कि अदालत। अवैध रूप से प्राप्त बयान को बस खारिज नहीं किया जा सकता।"
प्रतिवादी की ओर से तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, जो डॉ. नतेशा की ओर से पेश हुए, ने एकल न्यायाधीश के फैसले को सही ठहराते हुए तर्क दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुरूप है। उन्होंने कहा:
"यह निर्णय कानून के अनुसार लिया गया है। अन्य मामलों का उल्लेख करना जहां ऐसे आदेशों को चुनौती नहीं दी गई, दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला एक कानूनी मिसाल है, और सभी आरोपी इसका लाभ उठा सकते हैं।"
इसके अलावा, यह भी बताया गया कि लोकायुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री और अन्य आरोपियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पर 'बी समरी' रिपोर्ट दायर की है। इस पर सक्षम अदालत 3 अप्रैल को आवश्यक आदेश पारित करेगी।
यह भी तर्क दिया गया कि कथित अवैध भूखंड सरकार को वापस कर दिए गए हैं और अधिसूचना रद्द करने और मुआवजे की प्रक्रिया सरकार की एक वैधानिक योजना के तहत थी। दवे ने सवाल किया:
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"क्या यह कहा जा सकता है कि वैधानिक रूप से भूखंड आवंटन और MUDA के प्रस्ताव को अपराध माना जाए?"
आगामी सुनवाई
इस मामले की सुनवाई गुरुवार (27 मार्च) को जारी रहेगी, जिसमें दोनों पक्ष अपने तर्क प्रस्तुत करेंगे।
मामले का शीर्षक: प्रवर्तन निदेशालय बनाम डॉ. नतेशा डी बी
मामला संख्या: WA 299/2025