बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है कि यदि कोई पति या पत्नी आत्महत्या करने की धमकी देता है या इसका प्रयास करता है, तो यह क्रूरता के रूप में माना जाएगा। यह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का आधार बन सकता है।
न्यायमूर्ति आर. एम. जोशी ने एक महिला द्वारा दायर दूसरी अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने परिवार न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति को तलाक दिया गया था। निचली अदालत ने पाया कि पत्नी ने अपने पति के साथ क्रूरता की थी, जिससे विवाह का विघटन उचित था।
न्यायालय के अवलोकन और निष्कर्ष
पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी अक्सर उसे और उसके बुजुर्ग माता-पिता को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देती थी, जिसमें आत्महत्या करके उन्हें कानूनी पचड़ों में डालने की बात शामिल थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने एक बार अपनी नस काटकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। जब उसे अदालत में गवाह के रूप में बुलाया गया, तो उसने अपनी चोट को छिपाने के लिए हाथों में मेहंदी लगा ली।
"पति ने केवल यह आरोप नहीं लगाया कि उसकी पत्नी उसे और उसके परिवार को जेल भेजने के लिए आत्महत्या करने की धमकी देती थी, बल्कि वास्तव में उसने ऐसा करने का प्रयास भी किया। इस प्रकार का कार्य क्रूरता की श्रेणी में आता है और तलाक के लिए उचित आधार बनता है," न्यायमूर्ति जोशी ने 20 फरवरी को अपने फैसले में कहा।
इसके अलावा, पति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने उसके पिता पर झूठा आरोप लगाया कि वह उसकी मर्यादा भंग करने की कोशिश कर रहे थे। उसने दावा किया कि उसके पिता शराबी थे और अक्सर उसके साथ दुर्व्यवहार करते थे और उस पर हमला करने की कोशिश करते थे। हालांकि, ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय के रिकॉर्ड से पता चला कि पत्नी अपने आरोपों को साबित करने में विफल रही और पति द्वारा लगाए गए आरोपों का भी बचाव नहीं कर पाई।
कानूनी विश्लेषण और निर्णय
कोर्ट ने देखा कि ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय न्यायालय के निष्कर्ष एकसमान थे। न्यायमूर्ति जोशी ने यह माना कि इस अपील में किसी भी गंभीर कानूनी प्रश्न के लिए कोई आधार नहीं है, जिससे निचली अदालतों के निर्णयों में कोई हस्तक्षेप किया जाए।
"रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य स्पष्ट रूप से यह स्थापित करते हैं कि निचली अदालतों के निष्कर्ष सही हैं। चूंकि इन निष्कर्षों में कोई कानूनी त्रुटि नहीं पाई गई, इसलिए इस अदालत के लिए हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। अतः यह अपील खारिज की जाती है," न्यायाधीश ने फैसला सुनाया।
इस फैसले के साथ, अदालत ने पत्नी की अपील को खारिज कर दिया और पति को दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखा।
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केस विवरण
- केस शीर्षक: वी. सी. बनाम एन. सी. (द्वितीय अपील 268/2018)
- निर्णय की तिथि: 20 फरवरी, 2025
- पीठ: न्यायमूर्ति आर. एम. जोशी
- पत्नी के वकील: अधिवक्ता एम. पी. त्रिपाठी और एन. बी. खंडारे
- पति के वकील: अधिवक्ता क्षितिज सुरवे और हेमंत सुरवे