एक कड़े निर्णय में, केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राजस्व अधिकारियों द्वारा दायर दो रिट अपीलों को खारिज कर दिया और उन्हें ₹25,000 का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने इसे अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना मुकदमेबाज़ी करार दिया।
यह मामला डॉ. जस्टिस ए.के. जयशंकरन नांबियार और जस्टिस पी.एम. मनोज की खंडपीठ ने सुना, जिन्होंने राज्य और राजस्व अधिकारियों के बार-बार कोर्ट आदेशों की अनदेखी करने पर कड़ी नाराज़गी जताई। जमीन के मालिक मानांचिरा टाउनशिप कॉम्प्लेक्स प्रा. लि. ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने जमीन के रिकॉर्ड को धान की ज़मीन से बदलकर पुरायीडम (सूखी ज़मीन) घोषित करने की मांग की थी। यह ज़मीन वास्तव में पहले ही केरल संरक्षण अधिनियम 2008 लागू होने से पहले केरल भूमि उपयोग आदेश 1967 के तहत उचित अनुमति लेकर बदल दी गई थी।
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सिंगल जज ने पहले से मौजूद फैसलों (रेंजी के पॉल बनाम राजस्व विभाग अधिकारी और आइप वर्गीज बनाम राजस्व विभाग अधिकारी) के आधार पर जमीन को पुरायीडम के रूप में पुनः वर्गीकृत करने का निर्देश दिया था। लेकिन तहसीलदार ने 18 मार्च 2021 को एक आदेश पारित कर जमीन को “परिवर्तित होमस्टेड” के रूप में वर्गीकृत कर दिया और कोर्ट के स्पष्ट आदेश की अवहेलना की।
“तहसीलदार का व्यवहार कोर्ट द्वारा ‘शरारती’ और स्पष्ट निर्देशों की अवमानना” बताया गया।
इसके बाद कंपनी को एक और याचिका (WP(C) No.1397/2024) दायर करनी पड़ी। सिंगल जज ने फिर से जमीन को सूखी ज़मीन के रूप में वर्गीकृत करने का आदेश दिया, लेकिन तहसीलदार ने फिर से 11 जून 2024 को एक नया आदेश पारित किया, जो कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ था। इससे कंपनी ने अवमानना की कार्यवाही शुरू की।
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“राज्य को समझना चाहिए कि नागरिकों के मुकदमों में उन्हें कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है… उनका यह व्यवहार अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना था जिसके लिए उन्हें जवाबदेह ठहराना आवश्यक है।”
राज्य सरकार और राजस्व अधिकारियों ने इसके बजाय विलंब से पुनर्विचार याचिकाएं (RP No.660/2024 और RP No.705/2024) दायर कीं, जो देरी और मेरिट के अभाव में खारिज कर दी गईं। इसके बाद राज्य ने रिट अपीलें (WA No. 1154 OF 2025 और WA NO. 1170 OF 2025) दायर कीं।
खंडपीठ ने अपीलों को सख्ती से खारिज कर दिया, और राज्य सरकार के व्यवहार को अनुचित बताया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार कानून से ऊपर नहीं है और नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना उसका कर्तव्य है।
कोर्ट ने न केवल अपीलें खारिज कीं बल्कि ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया, जिसे तीन सप्ताह के भीतर निजी कंपनी को भुगतान करने का आदेश दिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि देरी और उल्लंघन के लिए तहसीलदार जिम्मेदार पाया गया तो राज्य सरकार यह राशि उससे वसूल सकती है।
“उनकी कार्रवाई निष्पक्षता और न्यायसंगतता से प्रेरित होनी चाहिए,” कोर्ट ने कहा, और सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही पर ज़ोर दिया।
मामला: केरल राज्य बनाम मननचिरा टाउनशिप कॉम्प्लेक्स प्रा. लिमिटेड और संबंधित मामला
मामला संख्या: WA No. 1154 OF 2025 और WA NO. 1170 OF 2025
याचिकाकर्ता के वकील: विशेष सरकारी वकील श्री एस. रेंजीत
प्रतिवादी के वकील: श्री बिनॉय वासुदेवन