दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नाबालिग स्कूली छात्रा को व्हाट्सएप के माध्यम से मॉर्फ की गई अश्लील तस्वीरें और धमकी भरे संदेश भेजने वाले आरोपी की दोषसिद्धि को सही ठहराते हुए उसकी अपील खारिज कर दी। न्यायमूर्ति डॉ. स्वर्णा कांत शर्मा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे साइबर अपराधों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और गरिमा पर गहरा असर पड़ता है।
इस प्रकार की तस्वीरें और संदेश भेजना न सिर्फ साइबर अपराध है, बल्कि एक नाबालिग की मानसिक सुरक्षा पर हमला है, कोर्ट ने टिप्पणी की।
यह मामला 23 सितंबर 2016 को अशोक विहार थाने में दर्ज एक FIR से जुड़ा है, जो एक कक्षा 9 में पढ़ने वाली बच्ची की मां द्वारा दर्ज कराई गई थी। शिकायत के अनुसार, बच्ची को व्हाट्सएप पर एक अनजान नंबर से उसकी मॉर्फ की गई नग्न तस्वीरें भेजी गईं, जिनमें चेहरा उसका था लेकिन शरीर किसी और का। साथ ही एक धमकी दी गई थी कि अगर उसने किसी को बताया, तो ये तस्वीरें इंटरनेट और फेसबुक पर वायरल कर दी जाएंगी।
Read Also:-दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी के प्रसव के लिए दोषी को चार हफ्ते की पैरोल दी
अगर किसी को बोला तो तेरी पिक मिसयूज़ करके फेसबुक और नेट पर डाल दूंगा,—भेजे गए संदेश में लिखा था।
जांच और सबूत
पुलिस ने तकनीकी जांच के बाद मोबाइल नंबर 7834891235 को ट्रेस किया, जो "गंभीर कम्युनिकेशन" नामक मोबाइल शॉप से जुड़ा था। छापेमारी के दौरान आरोपी राजेश गंभीर भागने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया। उसके कब्जे से एक Samsung J7 फोन और दो अन्य मोबाइल जब्त किए गए, जिनमें से एक में वही अश्लील तस्वीरें पाई गईं जो पीड़िता को भेजी गई थीं।
एफएसएल रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि उक्त मोबाइल से ही पीड़िता को वे आपत्तिजनक चित्र भेजे गए थे। अभियोजन पक्ष ने 15 गवाहों को पेश किया, जिनमें पीड़िता और उसकी मां ने कोर्ट में स्पष्ट रूप से घटना की पुष्टि की और भेजी गई तस्वीरों को पहचान लिया।
"एक 14 साल की बच्ची को इस प्रकार की तस्वीरें भेजना उसके आत्मसम्मान और मानसिक स्थिति को गहरा आघात देता है," कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने कहा कि आज के दौर में बच्चों को केवल शारीरिक नहीं, बल्कि डिजिटल सुरक्षित वातावरण देना भी आवश्यक है। पढ़ाई, सोशल मीडिया और संवाद के लिए डिजिटल उपकरणों का प्रयोग आम हो गया है, पर इनका दुरुपयोग गंभीर मानसिक क्षति पहुंचा सकता है।
Read Also:-दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज के कारण आत्महत्या मामले में पति को जमानत देने से किया इनकार
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 354A(iii), 354D, 509 और 506; पॉक्सो एक्ट की धारा 11(v)/12 और 13/14; तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और 67B के तहत दोषी ठहराया था। आरोपी को तीन साल की कठोर कैद (POCSO 12), एक साल (IPC 506), और पांच-पांच साल की सजा (POCSO 14 और IT Act 67B) सुनाई गई थी। सभी सजाएं एक साथ चलने का आदेश दिया गया।
साइबरस्पेस में बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए सख्त सजा दी जानी चाहिए, ताकि समाज में स्पष्ट संदेश जाए,—कोर्ट ने दोहराया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि तकनीक के दुरुपयोग से बचने के लिए जांच एजेंसियों को भी तकनीकी दक्षता और साक्ष्य-संग्रह के नए तरीकों को अपनाना होगा।
अंत में, कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया।