भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्पष्ट किया है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के दौरान नागरिकता की पुष्टि करना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। यह बयान उन याचिकाओं के जवाब में दाखिल एक काउंटर एफिडेविट के माध्यम से आया है, जिसमें SIR प्रक्रिया को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि ECI अपने संवैधानिक अधिकारों से आगे बढ़कर नागरिकों से उनकी नागरिकता प्रमाणित करने की मांग कर रहा है। इसके जवाब में आयोग ने कहा कि केवल भारतीय नागरिकों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धाराएं 16 और 19 से प्राप्त होती है।
"ECI को यह शक्ति प्राप्त है कि वह यह जांचे कि प्रस्तावित मतदाता मतदाता सूची में शामिल होने के मानदंडों को पूरा करता है या नहीं, जिसमें नागरिकता का मूल्यांकन शामिल है – यह अनुच्छेद 326 के अनुसार संवैधानिक रूप से अनिवार्य है।"— उप निर्वाचन आयुक्त संजय कुमार द्वारा दाखिल हलफनामा
आयोग ने यह भी कहा कि मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए भारतीय नागरिक होना अनिवार्य शर्त है और इसलिए इस स्थिति की पुष्टि करना आयोग का कर्तव्य है।
"संविधान और वैधानिक प्रावधानों के तहत, ECI मतदाताओं की पात्रता की जांच करने के लिए बाध्य है… यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई अपात्र व्यक्ति सूची में शामिल न हो और कोई पात्र व्यक्ति छूटे नहीं।"
ECI ने यह तर्क भी खारिज किया कि नागरिकता पर निर्णय केवल केंद्र सरकार ले सकती है। आयोग ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 9 का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार का विशेषाधिकार केवल विदेशी नागरिकता को स्वेच्छा से प्राप्त करने के मामलों तक सीमित है।
"नागरिकता से जुड़े अन्य पहलुओं की जांच अन्य संबद्ध प्राधिकरणों द्वारा उनके उद्देश्य के लिए की जा सकती है, जिसमें ECI जैसे संवैधानिक रूप से बाध्य संस्थान शामिल हैं।"
आयोग ने कहा कि संविधान के विभिन्न प्रावधानों में नागरिकता की पुष्टि की आवश्यकता विभिन्न उद्देश्यों से की जाती है, जैसे – किसी संवैधानिक पद को प्राप्त करना या किसी मौलिक अधिकार का दावा करना। इसलिए अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग संस्थाएं नागरिकता की जांच कर सकती हैं।
"नागरिकता स्थापित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज उस व्यक्ति के विशेष ज्ञान में होते हैं, जो खुद को भारतीय नागरिक बता रहा है... न कि राज्य की प्राधिकरणों के पास।"
इस बात पर भी आयोग ने आपत्ति जताई कि SIR प्रक्रिया में नागरिकता प्रमाण मांगना "बोझ का उलटा स्थानांतरण" (Reversing the Burden of Proof) है। आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के तहत फॉर्म 6 भरना होता है और आवेदन करते समय ही अपनी पात्रता साबित करनी होती है।
मतदाता सूची से नाम हटाने के सवाल पर, आयोग ने कहा कि ऐसा केवल विस्तृत जांच के बाद और तभी किया जाता है जब चुनाव रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ERO) को पूरा भरोसा हो कि व्यक्ति अपात्र है।
"SIR अभ्यास के तहत, किसी व्यक्ति की नागरिकता केवल इस आधार पर समाप्त नहीं होती कि उसे मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए अयोग्य पाया गया हो।"
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि वह नागरिकता निर्धारित नहीं कर रहा है, बल्कि सिर्फ यह सुनिश्चित कर रहा है कि कोई गैर-नागरिक मतदाता सूची में न शामिल हो – जो चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
"यह सत्यापित करना कि कोई आवेदनकर्ता या मौजूदा मतदाता नागरिकता की पात्रता शर्त को पूरा करता है या नहीं – यह आयोग की वैधानिक शक्तियों के अंतर्गत आता है।"
17 जुलाई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि नागरिकता निर्धारण करना चुनाव आयोग का कार्य नहीं है, बल्कि यह केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है। कोर्ट ने ECI को सुझाव भी दिया कि वह बिहार SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर भी विचार करे।
यह मामला अब अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई को सूचीबद्ध है।
ECI की ओर से यह जवाब अधिवक्ताओं एकलव्य द्विवेदी, सिद्धांत कुमार, प्रतीक कुमार और कुमार उत्सव ने तैयार किया।
मामला संख्या: W.P.(C) No. 640/2025 एवं संबंधित याचिकाएं
मामले का शीर्षक: Association for Democratic Reforms & Ors. बनाम चुनाव आयोग एवं अन्य संबंधित याचिकाएं