Logo
Court Book - India Code App - Play Store

आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए प्रताड़ना इतनी गंभीर होनी चाहिए कि पीड़ित के पास कोई अन्य विकल्प न बचे: सुप्रीम कोर्ट

9 Feb 2025 4:29 PM - By Shivam Y.

आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए प्रताड़ना इतनी गंभीर होनी चाहिए कि पीड़ित के पास कोई अन्य विकल्प न बचे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने (abetment of suicide) के आरोप को सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रताड़ना इतनी गंभीर हो कि पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प न बचे। इस मामले में, अदालत ने आरोपियों के खिलाफ धारा 306 IPC (भारतीय दंड संहिता) के तहत दर्ज मामले को ख़ारिज कर दिया, यह पाते हुए कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की सीधी भूमिका साबित करने में असफल रहा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से जुड़ा है, जहाँ एक युवती तनु ने आत्महत्या कर ली थी। आरोप था कि पहले अभियुक्त अय्यूब के बेटे ज़ियाउल रहमान की पिटाई के कारण मृत्यु हो गई थी, और इस घटना के बाद अय्यूब और अन्य आरोपियों ने तनु को ज़िम्मेदार ठहराते हुए उसे ताना मारा कि "तेरी वजह से हमारा लड़का मर गया, अब तू भी मर जा।"

इसके बाद, तनु ने मानसिक प्रताड़ना से आहत होकर आत्महत्या कर ली। मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने उसे इतना अपमानित किया कि वह खुद को खत्म करने के लिए मजबूर हो गई।

Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने बाहरी छात्रों के मतदान अधिकारों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

इस मामले में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि आत्महत्या और आरोपियों की कथित प्रताड़ना के बीच सीधा संबंध (proximate link) है। अदालत ने कहा कि मृतक तनु बहुत संवेदनशील थी और आरोपियों की टिप्पणियों से बहुत आहत हुई, जिससे उसने यह कठोर कदम उठाया। इसलिए, हाईकोर्ट ने धारा 306 IPC के तहत दर्ज मामले को बरकरार रखा और आरोपियों की याचिका खारिज कर दी।

अभियुक्तों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।

अदालत ने कहा कि "आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्त ने आत्महत्या करने की स्पष्ट प्रेरणा दी हो। केवल मौखिक टिप्पणी, वह भी तनावपूर्ण परिस्थिति में, पर्याप्त नहीं हो सकती।"

"हम इस समय केवल शिकायतकर्ता का एकतरफा दृष्टिकोण देख रहे हैं। क्या वास्तव में आत्महत्या के लिए कोई और कारण था? क्या तनु अपने मित्र ज़ियाउल रहमान की मृत्यु से दुखी थी? क्या उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य का इस मामले में हाथ था?" - सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले की एकतरफा (one-sided) जाँच की और केवल शिकायतकर्ता के बयान को ही सच मानकर चार्जशीट दायर कर दी, बिना किसी और एंगल की जाँच किए।

Read Also:- आयकर अपराधों के खिलाफ राहत: सीबीडीटी द्वारा अभियोजन से बचने के लिए नए समाशोधन दिशानिर्देश जारी

1. आत्महत्या के लिए उकसाने (Abetment of Suicide) की परिभाषा:

सुप्रीम कोर्ट ने कई पूर्व मामलों का हवाला देते हुए कहा कि धारा 306 IPC तभी लागू होगी जब आरोपी ने आत्महत्या करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से उकसाया हो।

केवल मौखिक ताना या अपमानजनक शब्द क़ानूनी रूप से पर्याप्त नहीं हैं।

2. साबित करने की शर्तें:

आरोपी का इरादा पीड़ित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने का होना चाहिए।

प्रताड़ना इतनी गंभीर होनी चाहिए कि पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प न बचे।

3. पूर्व के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:

मदन मोहन सिंह बनाम गुजरात राज्य (2010) 8 SCC 628

स्वामी प्रहलाददास बनाम मध्यप्रदेश राज्य

महेंद्र अवासे बनाम मध्यप्रदेश राज्य (2025 INSC 76)

इन मामलों में कोर्ट ने कहा था कि आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप तभी टिकेगा जब प्रत्यक्ष रूप से आत्महत्या की प्रेरणा दी गई हो।

Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवेदक को उत्तर देने का मौका दिए बिना मामला बंद करना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।

अदालत ने पुलिस की जाँच पर भी सवाल उठाए।

पुलिस ने इस मामले में केवल शिकायतकर्ता के बयान के आधार पर चार्जशीट दायर कर दी।

कोई स्वतंत्र जाँच नहीं की गई कि क्या तनु किसी अन्य कारण से तनाव में थी।

पुलिस ने यह नहीं देखा कि क्या ज़ियाउल रहमान की मृत्यु से जुड़े पारिवारिक तनाव का कोई और पहलू था।

अदालत ने इस मामले में नए सिरे से जाँच करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी को विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया।

"हम आदेश देते हैं कि एक स्वतंत्र विशेष जांच दल (SIT) बनाया जाए, जो इस मामले की दोबारा निष्पक्ष जाँच करे और इसकी रिपोर्ट दो महीने में कोर्ट में पेश करे।" - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अय्यूब और अन्य आरोपियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि यह मामला पुलिस की निष्पक्ष जाँच की विफलता को दर्शाता है।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला केवल ठोस सबूतों पर आधारित होना चाहिए, न कि मात्र आरोपों पर।

विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाएगा और इसकी रिपोर्ट दो महीने में सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाएगी।