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जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय: ज़ियारत को वक्फ के रूप में मान्यता दी गई, किसी औपचारिक घोषणा की आवश्यकता नहीं

Shivam Y.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि 1978 के अधिनियम के तहत "वक़्फ़ बाय यूजर" मानी जाने वाली ज़ियारत को वक़्फ़ घोषित करने या अधिसूचित करने की आवश्यकता नहीं होती। अदालत ने वक़्फ़ बोर्ड द्वारा ज़ियारत के अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की।

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय: ज़ियारत को वक्फ के रूप में मान्यता दी गई, किसी औपचारिक घोषणा की आवश्यकता नहीं

जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है कि कोई ज़ियारत (दरगाह) या धार्मिक स्थल, जो जम्मू-कश्मीर वक़्फ़ अधिनियम, 1978 की धारा 3(d)(i) के तहत “वक़्फ़ बाय यूजर” की श्रेणी में आता है, उसे वक़्फ़ के रूप में माने जाने के लिए किसी औपचारिक घोषणा या गजट अधिसूचना की आवश्यकता नहीं होती।

“वक़्फ़ में वे धार्मिक स्थल शामिल हैं जैसे मस्जिद, दरगाह, ज़ियारत, जो जनता द्वारा धार्मिक उपयोग में लाए जाते हैं, चाहे उनके लिए कोई औपचारिक समर्पण किया गया हो या नहीं,” अदालत ने कहा।

यह निर्णय जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की पीठ ने उस अपील को खारिज करते हुए दिया, जो इंतिज़ामिया कमेटी और उसके प्रबंधक हाजी अब्दुल आहद अखून द्वारा दायर की गई थी। अपील वक़्फ़ बोर्ड द्वारा गंदरबल ज़िले में स्थित “ज़ियारत शरीफ सैयद खाज़िर साहिब” के अधिग्रहण को चुनौती देने के संबंध में थी।

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अपीलकर्ता का दावा था कि उन्होंने खसरा नंबर 323 में स्थित 5 कनाल भूमि पर उक्त ज़ियारतें विकसित की हैं और यह भूमि उनकी निजी संपत्ति है, जिस पर वक़्फ़ बोर्ड का कोई अधिकार नहीं है।

इसके विपरीत, वक़्फ़ बोर्ड ने तर्क दिया कि यह ज़ियारत पहले ही SRO 510 दिनांक 11.12.1985 के तहत खसरा नंबर 322 में वक़्फ़ के रूप में अधिसूचित हो चुकी है और अपीलकर्ता की ज़मीन इसमें शामिल नहीं है। इसलिए अपीलकर्ता के पास वक़्फ़ बोर्ड की कार्रवाई को चुनौती देने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि "वक़्फ़ बाय यूजर" कानून में उसके धार्मिक उपयोग के कारण मान्य होता है, और इसके लिए किसी प्रकार की अधिसूचना की जरूरत नहीं होती।

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“ज़ियारत और दरगाहें अपने धार्मिक उपयोग के कारण वक़्फ़ मानी जाती हैं। उन्हें वक़्फ़ घोषित करने या गजट में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होती,” पीठ ने कहा।

जस्टिस कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 4 केवल वक़्फ़ की सर्वेक्षण प्रक्रिया से जुड़ी है और वह वक़्फ़ घोषित करने की प्रक्रिया नहीं है। धारा 6 केवल मौजूदा वक़्फ़ों की सूची प्रकाशित करने का कार्य करती है, वह वक़्फ़ की स्थिति को पैदा नहीं करती।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता की भूमि, जो खसरा नंबर 323 में है, अधिसूचित वक़्फ़ की सूची में शामिल नहीं है, इसलिए उनके पास वक़्फ़ बोर्ड की कार्रवाई को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं बनता।

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“चूंकि अपीलकर्ताओं की भूमि अधिसूचित वक़्फ़ में नहीं आती, इसलिए उन्हें न तो ज़ियारत को वक़्फ़ घोषित करने की अधिसूचना को चुनौती देने का और न ही वक़्फ़ बोर्ड की प्रबंधन लेने की कार्रवाई को चुनौती देने का अधिकार है,” कोर्ट ने कहा।

पीठ ने वक़्फ़ बोर्ड की कार्रवाई को सही ठहराया और अपील खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने अपीलकर्ता को यह छूट दी कि वह अपनी कथित स्वामित्व वाली भूमि के संरक्षण के लिए सिविल न्यायालय में उपयुक्त कानूनी उपाय कर सकते हैं।

मामले का शीर्षक: इंतिज़ामिया समिति बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश

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