भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति आर. महादेवन द्वारा दिए गए एक फैसले में, लुधियाना स्थित केंद्रीय जेल के पूर्व सहायक अधीक्षक गुरदीप सिंह की अपील को खारिज कर दिया है। सिंह को एक विचाराधीन कैदी को भागने में मदद करने की साजिश रचने और जेल में मौजूद पुलिस अधिकारियों पर हमला करने के जुर्म में दोषी ठहराया गया था। सिंह को बठिंडा फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 2014 में सजा सुनाई थी, और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2023 में इस फैसले को बरकरार रखा था।
मामला 2010 की एक घटना से जुड़ा है, जब हेड कांस्टेबल हरजीत सिंह और हरदियाल सिंह अंडरट्रायल कुलदीप सिंह को अदालत ले जा रहे थे। आरोप है कि गुरदीप सिंह ने उन्हें एक निजी वाहन से लौटने के लिए राजी किया, जिसमें पहले से दो अज्ञात व्यक्ति बैठे थे। गांव कुटीवाल के पास वाहन रुका, तो उन दोनों ने मिर्च पाउडर, चाकू और कृपाण से हमला कर कुलदीप सिंह को छुड़ाने की कोशिश की। लोगों के हस्तक्षेप से फरार होने की कोशिश नाकाम रही, लेकिन हमलावर और गुरदीप सिंह मौके से भाग गए।
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हालांकि प्रारंभिक पुलिस जांच में गुरदीप सिंह को निर्दोष बताया गया था, लेकिन मुकदमे के दौरान हेड कांस्टेबल हरजीत सिंह की गवाही के आधार पर उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत तलब किया गया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि गुरदीप सिंह द्वारा वाहन की व्यवस्था, हमलावरों की मौजूदगी सुनिश्चित करना, योजनाबद्ध स्थान पर रुकवाना और पीड़ितों की मदद न करना, साजिश में सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है।
रक्षा पक्ष ने झूठा फंसाने, सीधे तौर पर भूमिका न होने और "रुचि रखने वाले" गवाह की गवाही पर निर्भर रहने का दावा किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हरजीत सिंह की गवाही को सुसंगत पाया, जिसे चिकित्सीय और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से समर्थन मिला, और इसे कानूनन पर्याप्त माना। अदालत ने दोहराया कि साजिश परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से भी साबित हो सकती है और एक विश्वसनीय प्रत्यक्षदर्शी की गवाही भी सजा के लिए पर्याप्त है।
केस का शीर्षक: गुरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य
केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 705/2024