केरल हाईकोर्ट ने एक दुर्लभ और मानवीय निर्णय में एक उम्रकैद के दोषी को विवाह करने के लिए 15 दिन की पैरोल पर रिहा करने की अनुमति दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने दिया, जिन्होंने कोर्ट के असाधारण अधिकारों का प्रयोग करते हुए यह फैसला सुनाया।
यह राहत केवल दोषी के लिए नहीं थी, बल्कि उस साहसी और समर्पित दुल्हन के सम्मान में थी, जिसने यह जानते हुए भी कि उसका जीवनसाथी उम्रकैद की सजा काट रहा है, उससे विवाह करने का निश्चय किया।
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"प्रेम कोई रुकावट नहीं मानता। यह बाधाओं को लांघता है, दीवारों को पार करता है, और आशा से भरे अपने गंतव्य तक पहुँचता है,"
– न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने प्रसिद्ध अमेरिकी कवयित्री माया एंजेलो का उद्धरण दिया।
शुरुआत में जेल प्रशासन ने पैरोल देने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि जेल नियमों के अनुसार किसी दोषी को अपनी ही शादी के लिए आपातकालीन छुट्टी नहीं दी जा सकती। लेकिन हाईकोर्ट ने इस विशेष परिस्थिति को देखते हुए नियमों से परे जाकर निर्णय लिया।
मामले के अनुसार, दोषी की शादी का कार्यक्रम उसके दोषी ठहराए जाने से पहले तय हो चुका था। लेकिन सजा सुनाए जाने के बाद भी लड़की ने शादी करने का निर्णय लिया और अपने प्रेम में कोई कमी नहीं आने दी। इससे प्रभावित होकर दोषी की माँ ने हाईकोर्ट से विशेष अनुमति की गुहार लगाई।
"मैं इस मामले को उस लड़की के दृष्टिकोण से देख रहा हूँ, जिसने दोषी से विवाह करने का निर्णय लिया। उम्रकैद की सजा के बावजूद उसका प्रेम कायम है,"
कोर्ट ने टिप्पणी की।
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चूंकि शादी रविवार, 13 जुलाई को तय है, कोर्ट ने दोषी को एक दिन पहले जेल से रिहा करने और 26 जुलाई को शाम 4 बजे तक जेल में वापस रिपोर्ट करने का आदेश दिया।
"उस लड़की को खुशी मिले, और यह कोर्ट उस पर आशीर्वादों की वर्षा करे,"
न्यायमूर्ति ने आदेश समाप्त करते हुए कहा।
मामले का शीर्षक: सथी बनाम केरल राज्य
याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट श्री पी. मोहम्मद साबाह, श्री लिबिन स्टैनली, श्रीमती सायपूजा, श्री सादिक इस्माइल, श्रीमती आर. गायत्री, श्री एम. माहिन हम्जा, श्री एल्विन जोसफ, और श्री बेंसन एम्ब्रोज़
प्रतिवादी की ओर से: एडवोकेट श्रीमती सीता एस., वरिष्ठ लोक अभियोजक