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केरल उच्च न्यायालय ने एमएससी एल्सा 3 मुआवजा वार्ता पर रोक लगाई, पारदर्शिता के मुद्दे उठाए

Shivam Y.

केरल हाईकोर्ट ने MSC एल्सा 3 जहाज डूबने से हुए नुकसान को लेकर MSC कंपनी से मुआवजा बातचीत की प्रक्रिया पर पारदर्शिता की कमी के आधार पर रोक लगाई; कोर्ट ने एडमिरल्टी एक्ट के तहत न्यायिक निगरानी में निपटारा करने का सुझाव दिया।

केरल उच्च न्यायालय ने एमएससी एल्सा 3 मुआवजा वार्ता पर रोक लगाई, पारदर्शिता के मुद्दे उठाए

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार, 19 जून को MSC कंपनी और राज्य सरकार के बीच चल रही बातचीत की प्रक्रिया पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी। यह बातचीत MSC Elsa 3 कार्गो जहाज के डूबने और उससे हुए नुकसान के लिए मुआवजे को लेकर हो रही थी।

राज्य सरकार ने इस उद्देश्य के लिए एक समिति गठित की थी, जिसका कार्य टकराव से हुए नुकसान, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश, तटीय जीवन पर प्रभाव, मलबे को हटाने और मछुआरों को हुए आर्थिक नुकसान का आकलन कर उचित मुआवजा तय करना था।

हालांकि, मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति बसंत बालाजी की खंडपीठ ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है, खासकर जब सार्वजनिक हित और पर्यावरणीय नुकसान शामिल हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ऐसी बातचीत न्यायिक निगरानी में कर सकती है।

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“विभिन्न प्रश्न विचारणीय हैं। क्या यह बातचीत प्रतिवादी कंपनी के साथ किसी समझौते में परिणत होती है? क्या इसमें पारदर्शिता हो सकती है? क्या इस अदालत का क्षेत्राधिकार प्रभावित होगा?”

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि राज्य सरकार MSC कंपनी के खिलाफ एडमिरल्टी अधिनियम के तहत वाद दायर करने की योजना बना रही है, इसलिए ऐसी कोई भी बातचीत कानूनी प्रक्रिया के तहत की जानी चाहिए।

“प्रथम दृष्टया ऐसी बातचीत कोर्ट के समक्ष एडमिरल्टी अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत की जा सकती है... इसलिए वर्तमान में इस वार्ता की प्रक्रिया को स्थगित करना उपयुक्त होगा।”

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इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने MSC कंपनी से राज्य सरकार की बातचीत पर रोक लगा दी है।

यह आदेश पूर्व सांसद टी. एन. प्रतापन द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया गया, जिसमें MSC Elsa 3 जहाज के डूबने के बाद पर्यावरण और मछुआरा समुदाय को हुए नुकसान पर चिंता जताई गई थी।

इसके जवाब में राज्य सरकार ने कोर्ट को एक हलफनामा सौंपा, जिसमें उसने अब तक उठाए गए कदमों की जानकारी दी। सरकार ने बताया कि वह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई करने की योजना बना रही है।

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इसके साथ ही, पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव को प्रमुख प्रभाव आकलन अधिकारी नियुक्त किया गया है। मत्स्य मंत्रालय ने हितधारकों के साथ बैठक की और मत्स्य विभाग ने नुकसान के आकलन की रिपोर्ट विशेष सचिव को भेज दी है।

इस मामले की अगली विस्तृत सुनवाई अगले सप्ताह होगी।

“राज्य के पास विकल्प है कि वह कोर्ट के माध्यम से बातचीत करे, विशेषकर जब उसने MSC के खिलाफ एडमिरल्टी वाद दायर करने की मंशा जताई है।”

मामले का शीर्षक: टी. एन. प्रतापन बनाम भारत संघ एवं अन्य

मामला संख्या: डब्ल्यूपी (पीआईएल) 50/2025