केरल हाईकोर्ट ने 2024 के त्रिशूर पूरम उत्सव के दौरान कथित व्यवधानों से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मंदिर उत्सवों के सांस्कृतिक महत्व पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
“संस्थान के गर्भगृह में की जाने वाली पूजा किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक या धार्मिक आवश्यकता हो सकती है, लेकिन उत्सव समुदाय की खुशी, उत्साह, भक्ति और गर्व की अभिव्यक्ति होते हैं,” न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति विजू अब्राहम की खंडपीठ ने कहा।
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यह मामला पुलिस द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप के आरोपों पर आधारित था। याचिकाकर्ता, जो सभी श्री वड़क्कुनाथन देवस्वम के भक्त हैं, का कहना था कि पुलिस ने सैकड़ों साल पुरानी परंपराओं को बाधित कर धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया।
राज्य कैबिनेट ने इस मामले में तीन-स्तरीय जांच का आदेश दिया, जिसकी अगुवाई डीजीपी, एडीजीपी (लॉ एंड ऑर्डर), और क्राइम ब्रांच कर रहे हैं। डीजीपी शेख दरवेश साहेब की रिपोर्ट में पुलिस की दमनकारी कार्यवाही को व्यवधान का कारण बताया गया। एडीजीपी मनोज अब्राहम, जिन्होंने विभिन्न विभागों के समन्वय की जांच की, ने कहा कि अन्य विभागों की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई। क्राइम ब्रांच की जांच एडीजीपी एच. वेंकटेश के नेतृत्व में जारी है।
“राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि जांच तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचे और यह कार्य तीन महीनों के भीतर पूरा किया जाए,” कोर्ट ने कहा।
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अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि कोचीन, तिरुवाम्बाडी और परमेक्कावु देवस्वम ने यह सुनिश्चित किया है कि 2025 का पूरम उत्सव, जो 6 और 7 मई को होना है, परंपरा के अनुसार आयोजित किया जाएगा। न्यायालय ने भविष्य के आयोजन के लिए स्पष्ट मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
“मंदिर एक समुदाय की पहचान, गर्व और एकता का केंद्र होते हैं,” कोर्ट ने कहा, यह रेखांकित करते हुए कि धार्मिक संस्थाएं सामाजिक जीवन की धुरी होती हैं।
2025 के त्रिशूर पूरम के सफल आयोजन के लिए कोर्ट ने विस्तृत निर्देश दिए:
- जिला पुलिस प्रमुख को यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुभवी पुलिस अधिकारी भीड़ प्रबंधन करें।
- जिला कलेक्टर को कचरा प्रबंधन और अन्य व्यवस्थाओं का समुचित समन्वय करना होगा।
- देवस्वमों की ओर से वालंटियर की सूची 25 अप्रैल 2025 तक जिला कलेक्टर को सौंपी जानी चाहिए।
- राज्य पुलिस प्रमुख को कानून व्यवस्था की स्थिति पर बारीकी से नजर रखनी होगी।
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कोर्ट ने इन याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता भविष्य में राज्य की कार्रवाई से असंतुष्ट होने पर कानूनी उपाय अपना सकते हैं।
यह निर्णय इस बात को दोहराता है कि बड़े सांस्कृतिक आयोजनों जैसे त्रिशूर पूरम के दौरान सुरक्षा व्यवस्था और धार्मिक परंपराओं के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
केस संख्या: WP(C) 16440 of 2024 और संबंधित मामले
केस का शीर्षक: पी. सुधाकरन बनाम केरल राज्य और अन्य और संबंधित मामले